द्वाराहाट के बैल भी चालाक होते हैं – एक कुमाऊंनी कहावत।

On: Saturday, June 7, 2025 12:35 AM
कुमाऊंनी कहावत

उत्तराखंड का कुमाऊं क्षेत्र अपनी सुरम्य वादियों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ अपनी लोककथाओं, कहावतों और हास्यपूर्ण व्यंग्य परंपरा के लिए भी प्रसिद्ध है। ऐसी ही एक दिलचस्प कुमाऊंनी कहावत है – “द्वारहाटक बल्द ले तेज हुनी।” अर्थात, “द्वाराहाट के बैल भी चालाक होते हैं।

अल्मोड़ा बनाम द्वाराहाट-मजेदार मुकाबला

इस कहावत की जड़ें एक लोककथा में छिपी हैं जो अल्मोड़ा और द्वाराहाट के बीच की चुटीली प्रतिद्वंद्विता को दर्शाती है। कुमाऊं के अल्मोड़ा जिले में आमतौर पर जिला मुख्यालय की ओर रहने वालों को अल्मोड़िया और द्वाराहाट की तरफ रहने वालों को दोरयाल (या दोरयाव) कहा जाता है। मजेदार बात यह है कि अल्मोड़िया लोग दोरयालों को तेज-तर्रार मानते हैं और दोरयाल अल्मोड़ियों को।

कहानी-स्याल्दे बिखोती मेले की शर्त

कहते है एक बार स्याल्दे बिखोती मेले में एक अल्मोड़ा निवासी अपने हट्टे-कट्टे, तेज़ और सुंदर बैल के साथ पहुंचा। संभवतः वह उसे मेला दिखाने के बहाने प्रतियोगिता में उतारने का विचार रखता था। मेले में ही एक द्वाराहाट निवासी भी अपने बैल के साथ आया। अल्मोड़िया और दोरयाल दोनों अपने-अपने बैलों को तेज-तर्रार बताने लगे। इस बीच दोनों की बातों-बातों में शर्त लग गई कि “जिसका बैल सबसे अधिक देर तक पानी पिएगा, वही विजयी।

उन दोनों बैलों को पास के गधेरे (छोटी नदी अथवा नाला) में ले जाया गया और पानी पीने के लिए लगा दिया गया। अल्मोड़ा वाले का बैल जल्दी-जल्दी पानी पीने लगा, जबकि द्वाराहाट से आया बैल धीरे-धीरे पानी में मुंह डुबोए बैठा रहा। असल में वह बैल सिर्फ पानी पीने का नाटक कर रहा था। परिणाम यह हुआ कि अल्मोड़ा वाले का बैल पानी पीकर हट गया और द्वाराहाट का बैल देर तक वहीं धीरे-धीरे पानी पीते रहा। अंततः शर्त के अनुसार वह विजेता बन गया।

कहावतें क्षेत्र विशेष नहीं, पूरे पहाड़ की पहचान हैं

ऐसी ही कहानी पिथौरागढ़ की सोर घाटी और गंगोलीहाट क्षेत्र में भी प्रचलित है। वहां भी कहा जाता है – “गंगोली का बैल भी तेज होता है।” एक लोककथा के अनुसार सोर का बैल इतना पानी पी जाता है कि उसकी मौत हो जाती है, जबकि गंगोली का बैल पानी में केवल मुंह डालकर नाटक करता है और जीत जाता है।

इसी प्रकार की कथाएं उत्तरकाशी में गंगा और यमुना घाटी, टिहरी और पौड़ी के बीच, और यहां तक कि कुमाऊं बनाम गढ़वाल के बीच भी कही जाती हैं।

व्यंग्य, चुटकुले और सामाजिक सीख

इन कहावतों और किस्सों के माध्यम से पहाड़ के संघर्ष भरे जनजीवन में हंसी-मजाक और चुटीले संवादों की परंपरा को दर्शाया जाता है। हालांकि ये बातें हास्य के लिए होती हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ लोग क्षेत्रीयता को बढ़ावा देकर आपसी वैमनस्यता फैलाने की कोशिश भी करते हैं।

असल में देखा जाए तो पहाड़ों के लोग सरल, विनम्र और आपसी मेल-जोल में विश्वास रखने वाले होते हैं। यह कहावतें हमें हँसी तो देती हैं, लेकिन साथ ही यह भी सिखाती हैं कि चालाकी और तेज़ी से ज़्यादा मायने रखता है-सद्भाव और समझदारी।


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  2. निरैवैली जैंता की लोककथा। 

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