उत्तराखंड की धरती न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता के लिए जानी जाती है, बल्कि यहाँ की लोककथाएं भी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की अनमोल धरोहर हैं। इन्हीं लोकगाथाओं में एक है “राजुला मालूशाही”, जो प्रेम, समर्पण, संघर्ष और सामाजिक बंधनों को लांघने की प्रेरणादायक कहानी है। यह गाथा कुमाऊं के लोक मानस में रची-बसी है और आज भी मेले-ठेले, झोड़ा-चांचरी और लोक गायकों की वाणी के माध्यम से जीवंत है।
पृष्ठभूमि: दो धनी परिवार, एक मनोकामना
कहानी की शुरुआत होती है बागेश्वर स्थित प्रसिद्ध बागनाथ मंदिर से, जहाँ व्यापारी सुनपति शौका अपनी पत्नी गांगुली के साथ संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं। उसी समय बैराठ (वर्तमान चौखुटिया, अल्मोड़ा) के राजा दुलाशाही और रानी धर्मा देवी भी निःसंतान थे और बागनाथ के दर्शन हेतु पहुँचे थे। दोनों दंपत्तियों ने एक-दूसरे से वादा किया कि अगर एक के घर पुत्र और दूसरे के यहाँ पुत्री का जन्म होता है, तो हम उनका विवाह करेंगे।
भगवान बागनाथ के आशीर्वाद से राजा दुलाशाही के घर पुत्र का जन्म और व्यापारी सुनपति शौका के घर पुत्री का जन्म हुआ। पुत्र का नाम मालूशाही और पुत्री का नाम राजुला रखा गया।
बैराठ में खुशियों का माहौल था। इस बीच ज्योतिषी ने बालक मालूशाही के अल्पायु होने की आशंका व्यक्त की और उसका बचाव एक शीघ्र विवाह में बताया गया। राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपत तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही से कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दुलाशाही की मृत्यु हो गई। राजा की मृत्यु के बाद षड्यंत्रों का जाल बिछाया गया और राजुला के नाम पर अपशकुन फैलाया गया। यह मिथक समाज में गहराता गया कि वह अपने ससुर को खा गई, बैराठ में उसके आने पर और अनर्थ होगा।
प्रेम का जागरण और संघर्ष की शुरुआत
वहीं समय बीतता है और दोनों बच्चे सुंदर, आकर्षक और गुणवान युवा बनते हैं। राजुला को जवान होते देख पिता चिंतित रहने लगे कि उन्होंने उन्होंने बेटी को बैराठ में ब्याहने का वचन दिया है। एक दिन अचानक राजुला अपनी माँ से पूछती है –
- माँ दिशाओं में कौन दिशा प्यारी है?
- पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा ?
- गंगाओं में कौन गंगा?
- देवों में कौन देव?
- राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?
उसकी माँ ने उत्तर दिया-
- दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है।
- पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं।
- गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है।
- देवताओं में सबसे बड़े महादेव हैं, जो आशुतोष हैं।
- राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीला बैराठ।
तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी माँ से कहा कि “हे माँ मेरा ब्याह रंगीले बैराठ में ही करना“। उसने मन ही मन तय किया की वह मालू से एक दिन जरूर मिलेगी।
इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौका के यहाँ आया और उसने अपने लिए राजुला का हाथ मांगा और सुनपत को धमकाया कि अगर अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इसी बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊँगा। यही सपना राजुला को भी हुआ। मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया, लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निंद्रा जड़ी सुंघा दी गई। जिससे वह गहरी निंद्रा में सो गया।
राजुला एक दिन चुपचाप हीरे की अंगूठी लेकर कठिन पहाड़ी रास्तों से होते हुए बैराठ पहुँची, परंतु दुर्भाग्यवश मालूशाही निंद्रा-जड़ी के प्रभाव में सो रहा था। राजुला ने निराश होकर उसकी उँगली में अंगूठी पहनाई, एक पत्र रखा और आंसुओं के साथ लौट गई।
आत्मबोध और तपस्या का मार्ग
सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निंद्रा खोल दी गई। जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था “हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निंद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी माँ का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।”उसने गुरु गोरखनाथ का शरण लिया, तंत्र-मंत्र सीखा, जोगी का वेश धारण किया और अपनी माँ से भिक्षा माँगकर स्वयं को तपस्वी घोषित कर दिया। फिर वह हूण देश की ओर निकल पड़ा उस भूमि की ओर जहाँ उसकी प्रिय राजुला को जबरन ब्याह दिया गया था।
विष की परीक्षा और पुनर्मिलन
हूण देश की विष-बावड़ियों से गुजरते हुए, विष देवी विषला की कृपा से मालू बच गया और राजुला के महल पहुँचा। जोगी के वेश में राजुला से मुलाकात हुई। जब उसने उसका हाथ देखा, तो मालू खुद को रोक न सका और अपने असली रूप में सामने आया। दोनों ने अपने प्रेम को फिर से स्वीकारा।
परंतु विक्खीपाल को सच्चाई का अहसास हो गया और उसने मालू को विष मिली खीर खिला दी। मालू मर गया, राजुला अचेत हो गई। तब सपने में मालूशाही की माँ को संकेत मिला और मालू के मामा मृत्यु सिंह, सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ हूण देश पहुंचे।
मृत्यु के पार जाकर पुनर्जीवन
तंत्रविद्या से मालू को पुनर्जीवित किया गया और साथ ही विक्खीपाल का अंत भी हुआ। मालू और राजुला ने मिलकर बैराठ संदेश भेजा कि नगर सजाया जाए। बैराठ में भव्य विवाह संपन्न हुआ और एक नई शुरुआत के साथ दोनों ने जीवन यापन किया।
प्रेमगाथा की लोकमहत्ता और आधुनिक सन्दर्भ
राजुला मालूशाही केवल एक प्रेम कथा नहीं, बल्कि सामाजिक व्यवस्था, जातीय विभाजन और स्त्री स्वातंत्र्य के प्रश्नों को चुनौती देने वाली महागाथा है। इसमें वह सबकुछ है जो एक कालजयी प्रेम कहानी को अमर बना देता है।
आज के साइबर युग में जब प्रेम डिजिटल माध्यमों तक सिमटता जा रहा है, राजुला का हिमालय लांघना और मालू का जोगी बनकर सबकुछ त्याग देना, प्रेम को उसका असली अर्थ देता है-समर्पण।
राजुला मालूशाही क्यों है विशेष?
विशेषता | विवरण |
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लोक गाथा का महत्व | उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल में अनेक रूपों में सुनाई जाती है |
संस्कृति में स्थान | झोड़ा, चांचरी, भगनौले, लोकगीतों और मेलों में जीवंत |
प्रेम का प्रतीक | त्याग और समर्पण की मिसाल |
नारी सशक्तिकरण | राजुला का साहस और निर्णय क्षमता |
राजुला मालूशाही सिर्फ प्रेम कथा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक दस्तावेज है जो उत्तराखंड के इतिहास, परंपरा और समाज की गहराइयों को दर्शाती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम न तो जात-पात देखता है, न ही दूरी और न ही सामाजिक बंदिशें।