कुमाऊं रेजिमेंट: भारत की सबसे पुरानी और गौरवशाली रेजिमेंट।

Kumaon Regiment

Kumaon Regiment: यूँ तो भारत में अदम्य साहस और वीरता की कई मिसालें हैं लेकिन जब हम बात करते हैं अपने सैनिकों की तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। भारतीय सैनिकों ने अपनी ताकत का परिचय पाकिस्तान को कई बार कराया है और शायद वह अब इस बात को जान चुके हैं कि भारत के सैनिकों से जीतना नामुमकिन है। खैर सिर्फ पाकिस्तान ही ऐसा देश नहीं है जिसने हार का स्वाद चखा है। इसके अलावा भी कई ऐसे देश है जहां भारतीय सैनिकों ने अपनी सेवाएं दी हैं। स्वतंत्रता से भी पहले भारतीय सैनिकों ने कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े हैं, चाहे वह प्रथम विश्व युद्ध ही क्यों ना हो। इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध, फिर मिश्र, बर्मा, कोरिया, जापान, यूरोप या इजराइल का हायफा शहर का युद्ध ही क्यों ना हो, जिसने सेना और उनकी रेजीमेंट में दुश्मनों को घुटनों पर ला दिया था। इस कड़ी में आज हम आपको कुमाऊं रेजीमेंट के बारे में बताने वाले हैं जो अपने निडरता और बहादुरी के लिए प्रसिद्ध है। यह रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी और सम्मानित रेजिमेंटों में से एक है। इसके वीर सैनिक देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने में कभी पीछे नहीं हटे।

स्थापना और इतिहास

कुमाऊँ रेजीमेंट की स्थापना करीबन 225 साल पहले हो चुकी थी। भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की बुनियाद ब्रिटिश काल के दौरान 18वीं शताब्दी में पड़ी। यह वह समय था जब भारत में अंग्रेजों ने अपने पांव जमा रखे थे और कुमाऊं पर हमला कर दिया था। इस तरह एक ब्रिटिश निवासी सर हेनरी रेजल को 19 में हैदराबाद रेजीमेंट बनाने का श्रेय दिया जाता है कुमाऊं रेजिमेंट की जड़ें हैदराबाद से जुड़ी हैं,  हालांकि इनका इतिहास 1788 ई० से बतौर हैदराबाद के नवाब सलबट खां की रेजीमेंट से शुरू होता है। माना जाता है कि सन 1794 में इस रेजीमेंट का नाम रेमंट कोर था। करीब 20 साल तक कुमाऊं रेजीमेंट हैदराबाद रेजीमेंट का हिस्सा थी और निजाम की 19 हैदराबाद रेजिमेंट के साथ संयुक्त रूप से मिलकर कई अहम लड़ाईयां लड़ी । फिर इसका नाम बदलकर कांटिजेंट रख दिया गया। फिर सन 1903 में  इस रेजीमेंट को भारतीय सेवा का अभिन्न हिस्सा बना दिया गया। हालांकि 27 अक्टूबर 1945 को इस रेजीमेंट का नाम पूरी तरह से बदलकर ‘कुमाऊं रेजीमेंट’ कर दिया गया। 

आधिकारिक चिन्ह

कुमाऊं रेजिमेंट का आधिकारिक चिन्ह पर शेर बना हुआ है, जो एक क्रॉस का निशान पड़े हुए हैं। असल में शेर को निडर जानवर कहा जाता है।  कुमाऊं रेजीमेंट के आधिकारिक चिन्ह पर शेर को दर्शाया गया है, जो कुमाऊं रेजिमेंट की बहादुरी और जज्बे का प्रतीक है। भारत के आजादी से पहले कुमाऊँ रेजीमेंट के जवानों ने कई अहम युद्धों में अपनी शहादत दी। कुमाऊं रेजीमेंट ने एंग्लो नेपाल युद्ध के दौरान गोरखा और अंग्रेजों की ओर से युद्ध लड़ा। सन 1987 की शुरुआत में कुमाऊं रेजीमेंट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए सेवाएं दी थी।

कुमाऊँ रेजिमेंट का मुख्यालय 

उत्तराखंड के पहाड़ों की रानी कहे जाने वाले रानीखेत में कुमाऊँ रेजीमेंट का सैन्य मुख्यालय है। यहां पर कुमाऊँ रेजिमेंट के जवानों को कड़ी ट्रेनिंग देकर तैयार किया जाता है। पहाड़ों के बीच बने इस मुख्यालय में एक रेजीमेंट की भर्ती में शामिल होने वाले लड़कों को सरहद की सुरक्षा की बारीकियां सिखाई जाती हैं। यहां से ट्रेनिंग पूरी करने के बाद जवान देश के विभिन्न सीमाओं पर अपनी सेवाएं देते हैं।

कुमाऊं रेजिमेंट का युद्धघोष

कुमाऊं रेजिमेंट का युद्धघोष है-‘कालिका माता की जय, बजरंग बली की जय, दादा किशन की जय’ पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में विराजित माँ कालिका जो हाट की कालिका के नाम से विख्यात हैं। कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों की आराध्य देवी हैं। 

आदर्श वाक्य 

कुमाऊँ रेजिमेंट का आदर्श वाक्य है – ‘पराक्रमो विजयते‘ है अर्थात पराक्रम की ही जीत होती है। 

रंगरूटों की भर्ती 

कुमाऊँ रेजिमेंट में रंगरूटों की भर्ती उत्तखण्ड के कुमाऊँ मंडल से होती है। वहीं हरियाणा राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों से भी इसमें सैनिक भर्ती किए जाते हैं।

गौरवशाली युद्ध अभियान 

  1. 1947-48 का जम्मू-कश्मीर युद्ध
    कुमाऊं रेजिमेंट ने भारत-पाकिस्तान के पहले युद्ध में अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया। सी.एन. चेट्टी की अगुवाई में, चार्ली कंपनी ने बड़गाम की लड़ाई में दुश्मनों के हमले को रोका और भारत की भूमि की रक्षा की।
  2. 1962 का भारत-चीन युद्ध
    इस युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों ने रेजांग ला की लड़ाई में इतिहास रच दिया। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 13वीं कुमाऊं बटालियन ने लगभग 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया। यह लड़ाई भारतीय सेना की वीरता का प्रतीक बन चुकी है। मेजर शैतान सिंह को इस वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
  3. 1971 का भारत-पाक युद्ध
    इस युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) की मुक्ति के लिए निर्णायक भूमिका निभाई। रेजिमेंट के जवानों ने दुश्मन के कई ठिकानों को नष्ट करते हुए भारत की जीत सुनिश्चित की। इस युद्ध में कुमाऊँ रेजिमेंट के 20 जवानों ने अपनी शहादत दी। 
  4. कारगिल युद्ध (1999)
    कारगिल युद्ध में भी कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों ने अद्वितीय वीरता दिखाई। दुर्गम पहाड़ों पर लड़ते हुए उन्होंने भारतीय क्षेत्र से घुसपैठियों को खदेड़ दिया। इस युद्ध में कुमाऊँ रेजिमेंट के 31 जवान शहीद हुए। 

उपलब्धियां 

  • कुमाऊँ रेजिमेंट के पास कई ऐसी उपलब्धियां हैं जो भारतीय सेवा के नाम को बुलंदियों तक पहुंचती हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत के पहले परमवीर विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा चार कुमाऊं रेजीमेंट से ही थे। 
  • 1962 के चीन युद्ध में रेजांगला की जंग में अभूतपूर्व भूमिका निभाने वाले कुमाऊँ रेजिमेंट के मेजर शैतान सिंह को दूसरा परमवीर चक्र मिला।
  • कुमाऊँ रेजिमेंट ने जनरल श्रीनगेश, जनरल केएस थिमैया (डीएसओ पद्म भूषण) और जनरल टीएन रैना (महावीर चक्र) के रूप में देश को दिए तीन थल सेना अध्यक्ष दिए। 

कुमाऊँ रेजिमेंट को मिले वीरता पदक 

  • परमवीर चक्र- 02
  • महावीर चक्र – 13
  • वीर चक्र – 82
  • परम विशिष्ट सेना मेडल – 14
  • अति विशिष्ट – 32
  • विशिष्ट – 69
  • उत्तम- 04
  • युद्ध सेवा पदक – 06
  • सेना मेडल – 303
  • अशोक चक्र – 04
  • कीर्ति चक्र -10
  • शौर्य चक्र- 43 से ज्यादा 
  • इसके अलावा रेजिमेंट को 750 से अधिक अन्य सम्मान मिल चुके हैं, जिनमें दो पद्म विभूषण भी शामिल हैं। 

लगभग 225 सालों से देश की सेवा में तत्पर कुमाऊँ रेजीमेंट की 22 से अधिक बटालियन पूरे देश में अपनी सेवाएं दे रही है। केवल ‘नाम, नमक और निशान‘ के लिए लड़ने वाले कुमाऊँ रेजिमेंट के योद्धा कांगो, सोमालिया, सूडान और इथियोपिया में संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। देश की रक्षा करते हुए कुमाऊँ रेजिमेंट के करीब 4000 से अधिक जवानों ने अपनी शहादत दी है। 

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