Uttarayani Fair : बागेश्वर में सरयू, गोमती और विलुप्त सरयू के संगम तट पर लगने वाला ‘उत्तरायणी मेला’ उत्तराखंड के सबसे पुराने मेले में से एक है। जो यहाँ हर साल ‘मकर संक्रांति’ के अवसर पर लगता है। इस मेले का अपना धार्मिक और पौराणिक महत्व है, जहाँ हजारों श्रद्धालु गंगा-स्नान, दान-पुण्य कर बाबा बागनाथ के दर्शन करते हैं। इस स्थान को ‘कुमाऊं की काशी’ कहा जाता है। मान्यता है उत्तरैणी यानि मकर संक्रांति के दिन यहाँ त्रिवेणी संगम में स्नान करने पर समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। यह मेला न केवल धार्मिक और पौराणिक महत्व रखता है, बल्कि यह दानपुर, मिलम-जोहार, काली कुमाऊं, सोर, गंगोली, खरही, अल्मोड़ा आदि पट्टियों की संस्कृति का संगम स्थल भी है। वहीं व्यापारिक दृष्टि से यह मेला बेहद महत्वपूर्ण है।
हर साल उत्तरायणी मेले की आधिकारिक शुरुआत मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व हो जाती है। जिसमें विभिन्न स्थानों से पहुंचे लोक वाद्य ढोल, दमुआ, नगाड़े, छोलिया नृत्य और कुमाऊं रेजिमेंट के बैंड की धुन के साथ विभिन्न स्कूली बच्चों द्वारा झांकियां निकाली जाती हैं। वहीं ऐतिहासिक नुमाइशखेत मैदान से मेले की विधिवत शुरुवात हो जाती है। मकर संक्रांति के दिन यहाँ संगम तट पर प्रदेशभर से श्रद्धालु पहुंचकर स्नान करते हैं। भगवान बागनाथ के दर्शन कर वे उत्तरायणी मेले का आनंद लेते हैं।
उत्तरायणी मेले की खासियत
बागेश्वर में लगने वाले उत्तरायणी मेले (Uttarayani Fair) का अपना धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक महत्व है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो मकर संक्रांति के दिन यहाँ स्नान, दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन यहाँ सरयू के किनारे लोग अपने किशोरों के जनेऊ/मुंडन संस्कार संपन्न करवाते हैं। वहीं यह उत्तरायणी मेला ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। 14 जनवरी 1921 यानी ‘उत्तरैणी’ के दिन उत्तराखंड के भोलेभाले ग्रामीणों पर थोपी गई अमानुषिक प्रथा ‘कुली बेगार‘ के समस्त रजिस्टर ब्रिटिश अधिकारियों के सामने सरयू में प्रवाहित कर दिए गए थे और यहाँ के लोगों ने सरयू के पवित्र जल को हाथ में लेकर बेगार न देने की सौगंध खाई। इसी दिन से कुमाऊँ और गढ़वाल में चली आ रही बेगार कुप्रथा को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया।
सांस्कृतिक दृष्टि से बागेश्वर का यह उत्तरायणी मेला बेहद महत्वपूर्ण हैं। इस मेले में दानपुर, जोहार, मुन्स्यार, काली कुमाऊँ, सोर, गंगोल, खरही, नाकुरी, द्वाराहाट आदि पट्टियों की संस्कृति का समागम होता है। सर्द रातों में अलाव के आगे झोड़ा, चांचरी, छपेली, भगनौल का आयोजन इस मेले की शोभा को बढ़ाते हैं। दानपुर, जोहार-मुन्स्यार से पारम्परिक परिधान में पहुँची महिलायें यहाँ की समृद्ध संस्कृति का दर्शन करवाती हैं।
Uttarayani Fair: व्यापारिक दृष्टि से भी यह मेला बेहद ख़ास है। सप्ताह भर में यहाँ करोड़ों का कारोबार होता है। मेले में हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटियों से लेकर, पहाड़ी भेड़-बकरियों के ऊन से बने विभिन्न प्रकार कम्बल, पश्मीना, शॉल, दन, चुकटे, थुलम आदि यहाँ आसानी से उपलब्ध रहते हैं। वहीं खरही के तांबे के उत्पाद मेले की शान बढ़ाते हैं। काली कुमाऊं यानी लोहाघाट, चम्पावत के भदेले (कढ़ाई) को खरीदने में लिए यहाँ दूर-दूर से पहुंचते हैं। पहाड़ के जैविक उत्पाद खरीदना हो तो आप बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में जरूर आएं। वहीं इस मेले में पहाड़ी कुत्ते जिसे आमतौर पर लोग ‘भोटिया डॉग’ कहते हैं, की खरीदारी जमकर होती हैं। इस प्रजाति के कुत्तों के पिल्लों को खरीदने के लिए लोग अन्य प्रदेशों से यहाँ पहुँचते हैं और हजारों रूपये में अपने पसंद आये कुत्ते को ख़ुशी-ख़ुशी ले जाते हैं।
वर्तमान में उत्तरायणी मेला
वर्तमान में यह मेला जिला प्रशासन बागेश्वर की देखरेख में आयोजित होता है। जिसकी तैयारियां प्रशासन महीने भर पहले शुरू कर देता है। रंगरोगन, घाट निर्माण, अस्थाई पुलों का निर्माण, सुरक्षा, ट्रैफिक सञ्चालन, सफाई आदि की पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होती है। उनके द्वारा इस मेले को भव्य बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक, खेल, शो, आदि कार्यक्रमों का आयोजन करवाया जाता है।
क्या करें
- वर्तमान में उत्तरायणी मेला करीब 7 दिन तक चलता है। इस दौरान आप त्रिवेणी संगम पर स्नान कर भगवान बागनाथ के दर्शन-पूजन करें।
- इस दौरान आप दान-पुण्य अवश्य करें।
- यदि आप अपने किशोरों के जनेऊ/मुंडन संस्कार करना चाहते हैं तो बागनाथ मंदिर से 2 किलोमीटर दूर सूरजकुंड नामक स्थान पर संपन्न करा सकते हैं।
- शाम को भजन संध्या में शामिल होकर भगवान बागनाथ की स्तुति करें।
क्या देखें
- जिला प्रशासन नुमाइशखेत में विभिन्न विभागों के स्टॉल लगाता है, आप वहां जाकर उनका अवलोकन कर सकते हैं।
- यहाँ विभिन्न स्कूलों के बच्चे अपने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं, आप उनका आनंद ले सकते हैं।
- तय आयोजन स्थलों में आप बॉलीबॉल, बैटमिंटन, दंगल आदि प्रतियोगताओं को देख सकते हैं।
- शाम को सरयू आरती का आनंद लें।
- रात को विभिन्न कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देख सकते हैं।
- झोड़ा, चांचरी, छपेली, भगनौल गायन का आनंद ले सकते हैं।
खरीददारी
- यहाँ लगे सरस बाजार से खरीदारी कर सकते हैं।
- जिला पंचायत के पास मुनस्यारी के व्यापारियों की दुकानों से जैविक उत्पाद और हिमालयी जड़ी-बूटियों की खरीददारी कर सकते हैं।
- वहीं हाथ से बने ऊनी उत्पाद दन, गलीचे, शॉल, पश्मीना आदि खरीद सकते हैं।
- दानपुर के रिंगाल के आकर्षक उत्पाद खरीद सकते हैं। यहाँ के मोस्टे, सुप, डोके, डलिया बहुत अच्छी किस्म के और टिकाऊ होते हैं।
- काली कुमाऊँ के लौह हस्तशिल्प खरीद सकते हैं।
- रमाड़ी के संतरे आपको अपनी ओर आकर्षित कर सकते है।
- गेठी, तरुड़, दानपुर के गन्ने की खरीददारी कर सकते हैं।
- शेर से भिड़ जाने वाले भोटिया डॉग्स की खरीददारी कर आप अपने आप को खुश कर सकते हैं। और भी बहुत कुछ है उतरैणी कौतिक में।
उत्तरायणी मेले के बारे में कुछ और ख़ास पढ़ना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक करें – ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक महत्व।
अपने आप में ख़ास है बागेश्वर का उत्तरायणी मेला। इसे किसी के लिए शब्दों में समेट पाना शायद संभव नहीं होगा। तो एक बार आईये ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत को समेटे उत्तरैणी कौतिक और देखें और क्या ख़ास है इस मेले में।