कुमाऊंनी होली: जहाँ होता है शास्त्रीय रागों, संगीत और परम्परा का अनूठा संगम।

Kumaoni Holi

Kumaoni Holi: रंगों का त्योहार यानी होली पूरे भारत में बड़े हर्षोल्लाष के साथ मनाई जाती है। विभिन्न राज्यों में इस त्योहार के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं, लेकिन उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की होली अपनी अनूठी परम्पराओं के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ होली का त्योहार सिर्फ रंगों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह लोक गायन, भक्ति, हंसी-ठिठोली और समाज को एक सूत्र में पिरोने वाला उत्सव है। संगीत और गायन की दृष्टि से इस अंचल की होली अपने आप में विशिष्ट है। यहाँ होली सिर्फ होली नहीं बल्कि सामाजिक अभिव्यक्ति का माध्यम है। 

कुमाऊँ में होली गायन की दो विधायें हैं, जिसमें पहली है खड़ी होली और दूसरी बैठकी होली। यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में खड़ी होली की धूम रहती है, वहीं शहरी क्षेत्रों में बैठकी होली अपने ख़ास अंदाज में गाई जाती है। खड़ी होली में पारम्परिक वेशभूषा यानी सफ़ेद कुर्ता-पजामा और गाँधी टोपी में होल्यार सामूहिक हाव-भाव और कदम से कदम मिलाते हुए होली गीतों को गाते हैं वहीं बैठकी होली में शास्त्रीय रागों पर आधारित गीत गाये जाते हैं। जिसमें भक्ति, प्रेम, धर्म, दर्शन  और श्रृंगार रस के गीतों की प्रधानता होती है। आईये विस्तृत में जानते हैं कुमाऊँ की इस अमूल्य धरोहर के बारे में –

बैठकी होली

बैठकी होली कुमाउंनी होली की महत्वपूर्ण विधा है, जिसकी शुरुआत पौष माह के प्रथम रविवार से होती है। बैठकी होली का आयोजन शाम को मंदिरों या किसी सार्वजनिक स्थल अथवा घर पर होता है। इस आयोजन में 5 से 7 या इससे अधिक लोग शामिल होकर शास्त्रीय रागों पर आधारित होली गीत गाते हैं। इन गीतों में श्रीकृष्ण की लीलाओं, प्रेम और भक्ति का वर्णन होता है। इसमें ढोलक, हारमोनियम, तबले और मजीरे की संगत होती है।

पौष माह से प्रारम्भ हुए बैठकी होली में वंसत पंचमी से पहले दिन तक गाये जाने वाली गीतों में भक्तिरस की प्रधानता होती है, जिसे निर्वाण की होली कहा जाता है वहीं शिवरात्रि तक अर्द्ध शृंगारिक होली और उसके बाद श्रृंगारिक होली गीत गाये जाते हैं। बैठकी शाम को शुरू होती है। धमार से आह्वान कर पहली होली राग श्याम कल्याण में गाई जाती है। समापन राग भैरवी पर होता है। बीच में समयानुसार अलग-अलग रागों में होलियां गाई जाती हैं। 

Kumaoni Holi
Kumaoni Holi

खड़ी होली

कुमाऊं में खड़ी होली गाने की शुरुआत फागुन महीने की एकादशी को चीर बंधन से होती है। इसी दिन से होली में रंग डालने की शुरुआत होती है। लोग पारम्परिक सफ़ेद कुर्ता, पजामा और टोपी पहनकर निर्धारित स्थान पर जिसे ‘होली का खोला’ या ‘होली का अखाड़ा’ कहते हैं, में एकत्रित होते हैं। वहां पर पय्याँ की टहनी पर हरे-लाल, पीले रंग के कपड़ों की चीर बाँधी जाती है। कैले बाँधी चीर रघुनन्दन राजा, सिद्धि को दाता विघ्न विनाशन जैसे होली गीत गाये जाते हैं। लोग एक दूसरे पर रंग छिड़कते हैं। उसके बाद खड़ी होली गाने की शुरुआत हो जाती है। होल्यार ढोल-दमुवे, मजीरे और ढोलक की धुन पर हाथों और कदम से कदम मिलाते हुए होली गीत गाते हैं।

कुमाऊँ के ग्रामीण अंचल में मनाई जाने वाली खड़ी होली का अपना ख़ास महत्व है। आमलकी एकादशी को चीर बंधन के साथ होली पूरे गाँव का भ्रमण करती है। सर्वप्रथम गांव के प्रसिद्ध मंदिर में होल्यार चीर के साथ पहुँचते हैं और वहां भक्तिमय होली का गायन करते हैं। फिर गांव के हर घर पर जाकर खड़ी होली गाते हैं। वहां होल्यारों का का खूब स्वागत किया जाता है। अंत में घर को आशीष के वचन दिए जाते हैं।रात को होली के अखाड़े में लोग एकत्रित होकर बैठ होली गाते हैं। इस दौरान लोग विभिन्न प्रकार के स्वांग रच दर्शकों का मनोरंजन करते हैं। 

कुमाऊनी होली में चीर की मुख्य भूमिका होती है। इसी चीर को घर-घर होली गीतों को गाते हुए घर-घर घुमाया जाता है और हर घर द्वारा किया पूजन किया जाता है। चीर घुमाने का यह सिलसिला एकादशी से पूर्णिमा की शाम तक चलता है। इसी रात को निर्धारित मुहूर्त पर पूर्ण विधि-विधान के साथ ‘चीर दहन’ किया जाता है, जिसे आम भाषा में ‘होलिका दहन’ कहते हैं।

उत्तराखंड में होलिका दहन के अगले दिन ‘छलड़ी’ मनाई जाती है। सुबह-सुबह लोग एक दूसरे के साथ जमकर रंगों और पानी के साथ होली खेलते हैं और उसके बाद होली की आधिकारिक समाप्ति की घोषणा करते हुए एकादशी से लगातार पहने सफ़ेद रंग के कपड़ों को उतारते हैं और उनकी धुलाई कर देते हैं। फिर परम्परानुसार होली के अखाड़े पर तांबे की पारम्परिक तौलियों में हलवा बनाते हैं और सभी ग्रामीणों में वितरित करते हैं। 

कुमाऊंनी होली केवल एक त्योहार न होकर यह यहाँ की समृद्ध परम्पराओं, संस्कृति और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यहाँ की शास्त्रीय संगीत पर आधारित बैठकी होली और खड़ी होली गायन की परम्परा अन्य राज्यों की होली से अलग बनाती है। यह पर्व कुमाऊँ की समृद्ध संस्कृति को दर्शाता है और समाज में सौहार्द को बढ़ावा देता है। यही कारण है कि कुमाउनी होली केवल एक परम्परा न होकर एक जीवंत विरासत है। 

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