कुमाउनी लोककथा- ठेकुवा और ठेकुली | Folk Tales of Uttarakhand

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Folk Tales of Uttarakhand कुमाउनी लोककथा- ठेकुवा और ठेकुली एक पुरानी लोक कथा है। इस लोककथा के पात्र अपने अच्छे और नए नाम की खोज में दूर तक जाते हैं और अंत में अपने पुराने उपनाम को लेकर ही वापस लौटते हैं। उन्हें अहसास हो जाता है कि हमारा काम ही हमें बड़ा बनाता है और हमारा काम ही हमारी पहचान है। नाम की सार्थकता काम में होती है। इस प्रकार है ठेकुवा और ठेकुली की लोक कथा –

कुमाउनी लोककथा- ठेकुवा और ठेकुली

पुराने समय की बात है। कुमाऊं के एक गांव में गौरी नाम की युवती थी। उसका विवाह पास के ही एक गांव के लड़के से तय हुआ। गाँव की पुरानी परंपरा के अनुसार उन्होंने एक दूसरे को नहीं देखा था। गौरी ने सिर्फ इतना ही सुना था कि लड़का बड़ा बुद्धिमान, मेहनती और गुणवान है। इन दोनों का विवाह हो गया। गौरी बड़ी रूपवती थी। वहीं यह युवक मेहनती और बुद्धिमान था, गांव में उसका बहुत मान- सम्मान था। लेकिन युवक कद में छोटा और रंग-रूप में साधारण था। कद छोटा होने के कारण लोग उसे ‘ठेकुवा’ कहते थे। वहीं ठेकुवा की पत्नी गौरी को लोग ‘ठेकुली’ कहने लगे थे।

रूपवती गौरी अपने पति का नाम ‘ठेकुवा’ सुनकर दुःखी रहने लगी। वहीं लोग उसे भी ठेकुली कहकर मजाक करने लगे थे। एक दिन उसने अपने पति से कहा – ठेकुवा देखो! आप में सब गुण ठीक हैं लेकिन जो आपका ये नाम ठेकुवा है इससे पूरे गांव वाले हमें ठेकुवा और ठेकुली कहकर मजाक उड़ाते हैं, जो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है। ठेकुवा समझदार था, उसने ठेकुली (गौरी) को समझाया कि नाम में कुछ नहीं रखा है, बस हमारे अच्छे कर्म होने चाहिए।

ठेकुली, अपने पति ठेकुवा की बातें मानने को तैयार नहीं हुई। उसने कहा यदि आप शहर से कोई अच्छा सा नाम नहीं ढूंढकर लाएंगे तो मैं आपको छोड़कर सदा के लिए अपने मायके चले जाऊंगी।

ठेकुवा जानता था कि नाम में कुछ नहीं रखा है। उसने एक जुगत लगाई और ठेकुली से कहा- ठेकुली मैं अपना नाम ढूंढने के लिए शहर जाने को तैयार हूं। यदि मैं जो नाम सुझा कर लाया, क्या पता वह नाम भी आपको पसंद आये या न आये, इसलिए तुम भी मेरे साथ शहर चलो, जो नाम आपको अच्छा लगे वह नाम आप मेरा रख देना। ठेकुवा की यह बात सुनकर ठेकुली खुश हो गई। ठेकुली अब अपने पसंद का नाम ढूंढकर रखेगी।

अगली सुबह ठेकुवा और ठेकुली शहर की ओर निकल पड़े। मन में एक नई उमंग थी, वे अब अपनी पसंद का नाम रखेंगे। उन्होंने सबसे पहले सुबह रास्ते में पड़ने वाले मंदिर में एक सुंदर महिला को झाड़ू लगाते देखा। ठेकुवा ने ठेकुली से कहा- जा ठेकुली, उस झाड़ू लगाने वाली महिला से पूछ तो उसका क्या नाम है? ठेकुली गई और पूछा दीदी आपका क्या नाम है? महिला ने उत्तर दिया-लक्ष्मी। यह नाम सुनकर ठेकुली निराश हो गई। उसने सोचा था लक्ष्मी नाम की महिलाएं बहुत धनवान होती होंगी और उनके जीवन में आराम रहता होगा, वे धन-वैभव से सम्पन्न होते होंगे।

वे यहां से आगे की ओर निकल गए। कुछ दूर पहुंचे ही थे, उन्हें रास्ते में भीख मांगता हुआ व्यक्ति दिखाई दिया। उन्होंने उस भिखारी से पूछ लिया कि उसका क्या नाम है? भिखारी ने अपना नाम बताया- धनपति। धनपति नाम सुनकर वे फिर आश्चर्य में पड़ गए। नाम धनपति यानि धनवान व्यक्ति फिर भी भीख मांगकर अपना पेट पाल रहा है। ठेकुवा और ठेकुली यहां से भी अपने अच्छे नए नाम की खोज में आगे निकल पड़े।
पैदल चलते-चलते वे आगे बढ़ते जा रहे थे। मन में उत्सुकता थी नए नाम की। कुछ मील पैदल चलने पर उन्हें एक शवयात्रा मिल गई। ठेकुवा और ठेकुली ने पूछ लिया- कौन मर गए ये? लोगों ने कहा – बड़े अच्छे सज्जन व्यक्ति थे ये, इनका नाम अमर सिंह है। फिर वे आश्चर्य में पड़ गए। सोचने लगे नाम अमर और मर गए।

ठेकुवा ने ठेकुली से कहा- ठेकुली देख, जिसका नाम लक्ष्मी है वह झाड़ू लगाकर साफ-सफाई कर रही है। जिसका नाम धनपति है वह भीख मांगकर आपका गुजर बसर कर रहा है और वहीं अमर नाम का व्यक्ति भी अमर नहीं रहा, कुछ ही देर में उसकी चिता जलेगी और वह मिट्टी में मिल जाएगा। ठेकुली अब बता हम अब आगे जाएं अपने नाम की खोज में या बस यहीं तक। ठेकुली देर तक सोच में पड़ गई। उसने ठेकुवा से कहा- ठेकुवा आपने सही कहा था, नाम की सार्थकता काम में होती है। काम ही हमारी पहचान होती है। अब चलो घर। हमारा यही ठेकुआ और ठेकुली नाम ठीक है, हम अपने इसी नाम को लेकर अपने गांव जाएंगे।

ठेकुली की इन बातों तो सुनकर ठेकुवा बहुत खुश होता। वे दोनों खुशी-खुशी यह दोहा कहते-कहते घर लौट गए –
“लक्ष्मी जैसे झाड़ू लगाए,
धनपति मांगे भीख।
अमर नाम का मर गया,
मेरा ठेकुवा नाम ठीक।।”

यह लोककथा कुमाऊं में बहुत पुरानी है। जब गांवों में बिजली थी, न टेलीविजन थे, उस समय इस प्रकार के लोक कथाएं एक दूसरे को सुनाते थे। यही मनोरंजन के साधन थे। सर्द रास्तों में चूल्हे में आग तापते हुए परिवार और पड़ोसियों के बीच इस प्रकार के लोक कथाओं का सुनने का आनंद कुछ और ही था। ठेकुवा और ठेकुली की यह लोक कथा मैंने बचपन में सुनी थी। लक्ष्मी जैसे झाड़ू लगाये, धनपति माँगे भीख…. वाला दोहा आज भी जुवां पर आता रहता है। नाम में क्या रखा है, हमारे कर्म अच्छे हों यही सीख को आत्मसात करते हुए यह पुरानी कुमाउनी लोककथा आप सभी के लिए।

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