Harsil Valley – उत्तराखंड के अधिकांश सौंदर्य स्थल दुर्गम पर्वतों में स्थित हैं, जहां पहुंचना सबके लिए आसान नहीं है। यही वजह है कि प्रकृति प्रेमी पर्यटक इन जगहों पर पहुंच नहीं पाते हैं। लेकिन ऐसे भी अनेक पर्यटक स्थल हैं जहां सभी प्राकृतिक विषमता और दुरुहता खत्म हो जाती है। वहां पहुंचना सहज और सुगम है। यही कारण है कि इन सुविधापूर्ण प्राकृतिक स्थलों पर ज्यादा पर्यटक पहुंचते हैं। प्रकृति की एक ऐसा ही एक खूबसूरत उपत्यका है हरसिल।
उत्तरकाशी से हरसिल
उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग के मध्य स्थित हरसिल ( Harsil ) समुद्री सतह से 7860 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। हरसिल उत्तरकाशी से 73 किलोमीटर आगे और गंगोत्री से 25 किलोमीटर पीछे सघन हरियाली से आच्छादित है। घाटी के सीने पर भागीरथी का शांत और अविरल प्रवाह हर किसी को आनंदित करता है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। जहां देखिए दूधिया जल धाराएं इस घाटी का मौन तोड़ने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के जंगल मन को मोहते हैं। जहां निगाह डालिए इन पेड़ों का जमघट लगा है। यहां पहुंचकर पर्यटक इन पेड़ों की छांव तले अपनी थकान को मिटाता है। जंगलों से थोड़ा ऊपर निगाह पड़ते ही आंखें खुली की खुली रह जाती है। हिमाच्छादित पर्वतों का आकर्षण तो कहने ही क्या। ढलानों पर फैले ग्लेशियरों की छटा तो दिलकश है ही।
हरसिल के जादुई आकर्षण से बन गई राम तेरी गंगा मैली फिल्म
इस स्थान की खूबसूरती का जादू अपने जमाने की सुपरहिट फिल्म राम तेरी गंगा मैली में देखा जा सकता है। बॉलीवुड के सबसे बडे शोमैन रहे राजकपूर एक बार जब गंगोत्री घूमने आए थे तो हरसिल का जादुई आकर्षण उन्हें ऐसा भाया कि उन्होंने यहां की वादियों में फिल्म ही बना डाली-राम तेरी गंगा मैली। इस फिल्म में हरसिल की वादियों का जिस सजीवता से दिखाया गया है वो देखते ही बनता है। यहीं के एक झरने में फिल्म की नायिका मंदाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया है। तब से इस झरने का नाम ‘मंदाकिनी फॉल’ है पड़ गया।
हरसिल वैली से इतिहास के रोचक पहलू
इस घाटी से इतिहास के रोचक पहलू भी जुड़े हैं। एक गोरे साहब थे फेडरिक विल्सन जो ईस्ट इंडिया कंपनी में कर्मचारी थे। वह थे तो इंग्लैंड वासी लेकिन एक बार जब वह मसूरी घूमने आए तो हरसिल की वादियों में पहुंच गए। उन्हें यह जगह इतनी भायी कि उन्होंने सरकारी नौकरी तक छोड़ दी और यहीं बसने का मन बना लिया। स्थानीय लोगों के साथ वह जल्द ही घुल-मिल गए और गढ़वाली बोली भी सीख ली। उन्होंने अपने रहने के लिए यहां एक बंगला भी बनाया। नजदीक के मुखबा गांव के एक लड़की से उन्होंने शादी भी कर डाली। विल्सन ने यहां इंग्लैंड से सेब के पौधे मंगाकर लगाए जो खूब फले-फूले। आज भी यहां सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से प्रसिद्ध है।
हरसिल वैली का आकर्षण
ऋषिकेश से हरसिल की लंबी यात्रा के बाद हरसिल की वादियों का बसेरा किसी के लिए भी अविस्मरणीय यादगार बन जाता है। भोजपत्र के पेड़ और देवदार के खूबसूरत जंगलों की तलहटी में बसे हरसिल की सुंदरता पर बगल में बहती भागीरथी और आसपास के झरने चार चांद लगा देते हैं। गंगोत्री जाने वाले ज्यादातर तीर्थ यात्री हरसिल की इस खूबसूरती का लुत्फ उठाने के लिए यहां रुकते हैं। अप्रैल से अक्टूबर तक हरसिल आना आसान है लेकिन बर्फबारी के चलते नवंबर से मार्च तक यहां इक्के-दुक्के सैलानी ही पहुंच पाते हैं।
हर्षिल की वादियों का सौंदर्य इन्हीं महीनों में खिलता है। जब यहां की पहाड़ियां और पेड़ बर्फ से लकदक रहते हैं, गोमुख से निकलने वाली भागीरथी का शांत स्वभाव यहां देखने लायक है। यहां से कुछ ही दूरी पर डोडीताल है इस ताल में रंगीन मछलियां ट्राडा भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इन ट्राडा मछलियों को लाने का श्रेय भी विल्सन को ही जाता है। बगोरी, घराली, मुखबा, झाला और पुराली गांव इस इलाके की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को समेटे हैं। हरसिल देश की सुरक्षा के नाम पर खींची गई इनर लाइन में रखा गया है जहां विदेशी पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबंध है। विदेशी पर्यटक हरसिल होकर गंगोत्री, गोमुख और तपोवन सहित हिमालय की चोटियो में तो जा सकते हैं लेकिन हरसिल में नहीं ठहर सकते हैं।
हरसिल से सात किलोमीटर की दूरी पर सात तालों का दृश्य विस्मयकारी है। इन्हें साताल कहा जाता है। हिमालय की गोद में एक श्रृखंला पर पंक्तिबद्ध फैली इन झीलों के दमकते दर्पण में पर्वत, आसमान और बादलों की परछाइयां कंपकपाती सी दिखती हैं। ये झील 9000 फीट की ऊंचाई पर फैली हैं। इन झीलों तक पहुंचने के रास्ते में प्रकृति का आप नया ही रूप देख सकते है। यहां पहुंचकर आप प्रकृति का संगीत सुनते हुए झील के विस्तृत सुनहरे किनारों पर घूम सकते हैं।
हरसिल कैसे पहुंचे
हरसिल की खूबसूरत वादियों तक पहुंचने के लिए सैलानियों को सबसे पहले ऋषिकेश पहुंचना होता है। ऋषिकेश देश के हर कोने से रेल और बस मार्ग से जुड़ा है। ऋषिकेश पहुंचने के बाद आप बस या टैक्सी द्वारा 218 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यहां पहुंच सकते हैं।
अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहें तो नजदीकी हवाईअड्डा जौलीग्रांट है। जौलीग्रांट से बस या टैक्सी द्वारा 235 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है।
समय और सीजन
यूं तो बरसात के बाद जब प्रकृति अपने नये रूप में खिली होती है तब यहां का लुत्फ उठाया जा सकता है। लेकिन नवंबर-दिसंबर के महीने में जब यहां बर्फ की चादर जमी होती है तो यहां का सौंदर्य और भी खिल उठता है। बर्फबारी के शौकीन इन दिनों यहां पहुंचते हैं।
पर्यटकों को यात्रा के दौरान इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि समय और जो भी हो, हरदम गरम कपडे साथ होने चाहिए। यहां पर खाने-पीने के लिए साफ और सस्ते होटल आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं जो आपके बजट के अनुरूप होते हैं।
हरसिल में ठहरने के लिए लोकनिर्माण विभाग का एक बंगला, पर्यटक आवास गृह और स्थानीय निजी होटल हैं। यहां खाने-पीने की पर्याप्त सुविधाएं हैं। गंगोत्री जाने वाले यात्री कुछ देर यहां रुककर अपनी थकान मिटाते हैं और हरसिल के सौंदर्य का लुत्फ लेते हैं।