पन दा का पुत्र-पलायन की मार झेलता पहाड़ी मानस पर सुंदर वृतांत।

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Dhoni in Uttarakhand

भारतीय क्रिकेट स्टार और पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (MS Dhoni) अपनी पत्नी साक्षी और बेटी के साथ 15 से 20 नवंबर 2023 तक उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित अपने पैतृक गांव ल्वाली आए हैं। इस दौरान वे अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। करीब 20 साल बाद वह अपने पैतृक गांव पहुंचे हैं। उनके गांव पहुंचने के बाद लोगों में खुशी का माहौल है। (Mahendra Singh Dhoni in Uttarakhand)

कैप्टन कूल के नाम से मशहूर ‘महेंद्र सिंह धोनी’ के पिता वर्षों पहले रोजगार के लिए अल्मोड़ा से पलायन कर गए और तत्कालीन बिहार प्रांत के रांची शहर में रहने लगे। माही की पढ़ाई भी इसी शहर से पूरी हुई और खेलने का शौक भी इसी शहर से आया. उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया और अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से उन्होंने क्रिकेट की दुनिया में अपना झंडा बुलंद किया और लाखों प्रशंसकों के दिलों पर राज कर रहे हैं। क्रिकेट की दुनिया से आराम लेकर माही सालों बाद अपने पैतृक गांव के दौरे पर आए हैं। उनके पहाड़ आने से लोग तो खुश हैं ही, साथ ही कुछ आलोचक भी माही के यहां आने पर कुछ सवाल पूछते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर श्री हीरा सिंह अधिकारी ने एक लेख के रूप में इस प्रकार दिये हैं:

अपने राँची वाले पन दा वर्षों पहले पहाड़ों से पलायन कर गये थे। तब पलायन निवारण आयोग का गठन नहीं हुआ था वर्ना अपने पन दा को इतनी दूर पलायन कर के बिहार न पहुँचना पड़ता । पलायन किये हुए व्यक्ति को अक्सर भुला दिया जाता है । हमें भी दिल्ली मुम्बई गये हुए अपने भाई बंधु तब तक याद रहते हैं जब तक वो मिठै और चाण लाते रहते हैं और उसके बदले भट्ट और गौहत ले जाते रहते हैं । पन दा इतने भाग्यशाली नहीं रहे कि पलायन की मार उन्हें नज़दीकी शहर दिल्ली तक पहुँचाती जहाँ से वो आसानी के साथ तलि-मलि कर पाते । उनका दुर्भाग्य उन्हें पहाड़ों से बहुत दूर राँची ले गया जहाँ पहुँचना आसान तो था लेकिन वहाँ से वापस आना कठिन था।

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Sakshi and M S Dhoni is in his VIllage Lwali Almora Uttarakhand

एक पक्का पहाड़ी होने के नाते पन दा ने हिम्मत नहीं हारी

पलायन पन दा को जिस राज्य में पहुँचाकर आया था वहाँ के हालात भी पहाड़ों के बराबर बदतर थे लेकिन एक पक्का पहाड़ी होने के नाते पन दा ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी मेहनत के पसीने से अपने भविष्य की बगिया को सींचने में लग गये। उनके इस संघर्ष के दौरान उन्हें कभी चाण और मिठै पहाड़ ले जाने और वहाँ से गौहत और भट्ट लाने की फ़ुरसत न मिली लिहाज़ा पहाड़ उन्हें भूल गया। पहाड़ और पन दा के बीच दूरियाँ इस कदर बड़ गयी कि पन दा झारखंड के पहाड़ों में पहाड़ देखने लगे और पहाड़ बिहार से आये मज़दूरों में ही पन दा को देखने लगा । व्यस्तताएँ इस कदर बड़ गई कि पन दा के कितने बच्चे हैं या वो बच्चे क्या कर रहे हैं यह जानने की फ़ुरसत न पहाड़ के पास थी और न यह पहाड़ को बताने की फ़ुरसत पन दा के पास थी।

एक आम पहाड़ी इसलिए खास होता है क्योंकि वो शिकायत नहीं करते

पन दा अगर NSA , CDS या किसी राज्य के मुख्यमंत्री होते तो उनके भी यशोगान गाये जाते और उनका कनेक्शन भी पहाड़ से बताया जाता लेकिन पन दा ठहरा चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी, अब ये बताइये कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को कोई अपना बताए भी तो कैसे । सलाम उगते सूरज को किया जाता है लिहाज़ा पन दा के सूरज को डूबता हुआ मानकर उन्हें भुला दिया गया । पन दा एक आम पहाड़ी थे और एक आम पहाड़ी इसलिए खास होता है क्योंकि वो शिकायत नहीं करते । कैसे भी हालत हों वो एडजस्ट करना जानते हैं । वो पहाड़ी भाषा के साथ-साथ बिहारी भाषा सीखने का जज़्बा भी रखते हैं , वो बांज और बुरांश की ठंडी हवा के साथ-साथ लू के थपेड़ों में भी जीवित रहने की कला सीख जाते हैं , उन्हें मडुआ और झुअर न मिले तो वो ज्वार और बाजरे से भी गुज़ारा कर लेते हैं , वो अल्मोड़ा के चितई ग्वेल ज्यू के मंदिर न पहुँच पाने की स्थिति में राँची के देउड़ी माँ के मंदिर पहुँचकर भी अपने ईष्टदेवों का आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं ।

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Dhoni House in Uttarakhand

उन्होंने अपनी संस्कृति और संस्कारों को नहीं छोड़ा

कल पन दा के पुत्र अपने गाँव पधारे थे। कुछ लोगों को शिकायत है कि वो मिठै और चाण लेकर क्यों नहीं पहुँचे । कुछ पत्रकार मित्र जो स्वयं उत्तराखंड के नहीं हैं लेकिन उन्हें पन दा के पुत्र का बहुत सादगी के साथ अपने गाँव पहुँचना उचित प्रतीत नहीं हो रहा है । उन्हें शायद पन दा के पुत्र का किसी नेता के भाँति उत्तराखंड पहुँचने की उम्मीद थी। सवाल उठ रहे हैं कि पन दा के पुत्र ने उत्तराखंड के लिए क्या किया ? मैंने पहले भी लिखा है कि पन दा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे इसलिए उनसे ये सवाल किया जा रहा है , अगर वो NSA, CDS या मुख्यमंत्री होते तो उनसे ये सवाल न किया जाता क्योंकि डरपोक क़ौम हमेशा कमजोर और सभ्य से ही सवाल पूछने में सहज होती है।
पन दा ने बेशक पहाड़ वर्षों पहले छोड़ दिया हो लेकिन ख़ुशी की बात यह है कि उन्होंने अपनी संस्कृति और संस्कारों को नहीं छोड़ा है, इसका जीता जागता सबूत यह है कि कल पन दा का पुत्र विश्व कप के सेमिफ़ाइनल मैच में मुम्बई न पहुँचकर अपने अपने पैतृक गाँव पहुँचा है।

मुम्बई सेमीफाइनल मैच छोड़ धोनी पहुंचे अपने गांव

कल के सेमिफ़ाइनल मैच में पन दा का पुत्र भी सचिन तेंदुलकर की भाँति अपनी शान दिखा सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसके लिए मुम्बई के वानखेड़े स्टेडियम की चकाचौंध से बेहतर अपने गाँव के देवी देवताओं के मंदिरों में पहुँचकर पूजा करना है। (Dhoni in Uttarakhand)

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