केदारनाथ की रक्षा करने वाली ‘भीम शिला’ की रहस्यमयी कहानी-चमत्कार या विज्ञान?

bhimshila kedarnath

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और शिवभक्तों का प्रमुख तीर्थस्थल है। लेकिन 16-17 जून 2013 को आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने इस पवित्र नगरी को तबाह कर दिया। भारी बारिश, ग्लेशियर टूटने और चोराबाड़ी झील के फटने से आई बाढ़ में सैकड़ों लोग मारे गए और पूरा शहर मलबे में तब्दील हो गया था।

जब सब कुछ तबाह हुआ, तब कैसे बचा केदारनाथ मंदिर?

जहाँ चारों ओर तबाही मची थी, वहीं केदारनाथ मंदिर चमत्कारिक रूप से लगभग अछूता रहा। इसकी पीछे की ओर एक विशालकाय शिला आकर रुक गई, जिसने बाढ़ के प्रवाह को दो भागों में बाँट दिया। इस शिला ने मंदिर को मलबे और तेज़ जलधारा से बचा लिया। यही शिला आज भीम शिला के नाम से जानी जाती है।

केदारनाथ मंदिर के पीछे स्थित भीम शिला – जिसने 2013 की बाढ़ में मंदिर को क्षतिग्रस्त होने से बचाया।
भीम शिला और केदारनाथ मंदिर।

कौन है यह ‘भीम शिला’?

स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का मानना है कि यह शिला महाभारत के भीम द्वारा लाई गई थी, इसलिए इसे ‘भीम शिला’ कहा गया। इस विश्वास को बल इस बात से मिलता है कि इतने बड़े पत्थर का अचानक मंदिर के ठीक पीछे आकर रुकना और बाढ़ को दिशा देना किसी चमत्कार से कम नहीं लगता।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

भूवैज्ञानिकों का मानना है कि यह शिला संभवतः ऊपर से टूटकर आई और मंदिर के पीछे आकर अटक गई। इसके कारण जल प्रवाह दो भागों में विभाजित हो गया और मुख्य मंदिर को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुँचा। वैज्ञानिक इसे एक प्राकृतिक घटना मानते हैं, लेकिन यह घटना इतनी सटीक थी कि धार्मिक आस्था और विज्ञान के बीच की रेखा धुंधली हो गई।

आज की स्थिति

भीम शिला आज केदारनाथ मंदिर के पीछे सुरक्षित रूप से स्थापित है और इसे एक पवित्र प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। इसे देखने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं और 2013 की बाढ़ के चमत्कारिक बचाव को श्रद्धा से याद करते हैं।

भीम शिला सिर्फ एक पत्थर नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और प्रकृति की शक्ति का प्रतीक बन चुकी है। यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि जब सब कुछ नियंत्रण से बाहर हो, तब भी कोई अदृश्य शक्ति हमारी रक्षा कर सकती है – चाहे वह ईश्वर हो या प्रकृति।

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