उत्तराखण्ड के बागेश्वर जनपद की खूबसूरत पहाड़ी में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है शिखर मूलनारायण मंदिर। समुद्र तल से लगभग 9,124 फीट की ऊंचाई पर, कपकोट तहसील के अंतर्गत यह स्थल न केवल एक आस्था और विश्वास का केंद्र है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और साहसिक पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। आइये विस्तृत में पढ़ते हैं 1008 Mool Narayan (Shikhar) Temple के बारे में।
भगवान श्रीकृष्ण का स्थानीय रूप: मूलनारायण देव
घने जंगलों के बीच सुरम्य ‘शिखर’ नाम की पहाड़ी पर विराजमान श्री 1008 मूलनारायण देव जी को भगवान श्रीकृष्ण का स्थानीय रूप माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में लोककल्याण हेतु श्रीकृष्ण ने यह रूप धारण कर शिखर पर्वत को अपनी तपोभूमि बनाया था।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, मूलनारायण जी मघन ऋषि और मायावती के पुत्र थे। मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण इनका नाम ‘मूलनारायण’ पड़ा। उनके तेज को देखकर कुछ ईर्ष्या करने वाले पंडितों ने बालक के प्रति नकारात्मक बातें उनके पिता मघन ऋषि के दिमाग में भरनी प्रारंभ कर दी। भय से मघन ऋषि द्वारा अपने पुत्र मूलनारायण को एक स्वर्ण बक्से में डालकर एक नदी में प्रवाहित कर दिया। उधर हिमालय में नंदा देवी को अपने भतीजे की इस घटना का स्मरण हुआ। पौराणिक कथानुसार तब उन्हें माँ नंदा इस जगह पर खड़ी चढ़ाई पार करते हुए अपने पीठ पर लादकर लाई थी। मूलनारायण को यह स्थान बेहद पसंद आया और यहीं पर निवास स्थान करने की इच्छा जताई।
मूलनारायण जी के दो पुत्र नौलिंग और बंज्यैण हुये। उन दिनों भनार गांव में चनौल ब्राह्मण का आतंक था। उन्होंने इसके वध के लिए अपने बड़े पुत्र बंज्यैण को भनार गांव भेजा। चनौल के वध के बाद बंज्यैण भनार गांव में ही स्थापित हो गए। उधर सनगाड़ का गांव सनगड़िया दैत्य के अत्याचारों से परेशान था। मूलनारायण जी ने अपने छोटे बेटे नौलिंग (जो नौले से प्रकट हुए थे) को इस गांव में भेज दिया। जहाँ नौलिंग जी ने सनगड़िया दैत्य को नौ दिन के लम्बे संघर्ष के बाद दसवें दिन एक पानी के ताल में डुबाकर मारा था और वे सनगाड़ गांव में पूजनीय हुये।
साल भर लगा रहता है भक्तों का तांता
शिखर धाम में वर्ष भर श्रद्धालुओं का आगमन बना रहता है। भक्त यहाँ अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं और मनौती पूर्ण होने पर सत्यनारायण कथा, भागवत पाठ और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं। यहाँ यह मान्यता प्रचलित है कि केवल वही भक्त इस कठिन यात्रा को पूरा कर पाते हैं जिनकी श्रद्धा और संकल्प अटूट होता है। स्थानीय लोग हर वर्ष अपनी फसल का पहला अनाज श्री मूलनारायण जी को अर्पित कर धन-धान्य से परिपूर्ण करने का आशीर्वाद मांगते हैं।
विशेष रूप से कार्तिक मास में यहाँ भव्य पूजा-अर्चना और धार्मिक आयोजन होते हैं, जिनमें क्षेत्रीय लोग बड़े उत्साह से भाग लेते हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य और रमणीयता से भरपूर
बांज, बुरांश और अन्य हिमालयी वृक्षों के घने जंगलों के मध्य स्थित यह धाम अपनी प्राकृतिक छटा के लिए भी प्रसिद्ध है। वर्ष 1991 में पंजाबी अखाड़े के महंत बद्रीनारायण जी ने यहाँ मंदिर का नवनिर्माण करवाया। यहाँ भक्तों और यात्रियों के लिए धर्मशालाओं की व्यवस्था भी की गई है। अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित होने के बावजूद, यहाँ पानी की कोई कमी नहीं है। मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित एक गुफा (बिंवर) से जलधारा निकलती है, जिससे मंदिर परिसर की जल आवश्यकताएँ पूरी होती हैं।
रोमांचक यात्रा और हिमालय दर्शन
शिखर धाम तक पहुँचने के लिए भक्तों को 8 से 10 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है। यह यात्रा बांज-बुरांश के मनोरम जंगलों से होकर गुजरती है, और हर कदम पर नई अनुभूतियाँ देती है। इस चोटी से पंचाचूली, नंदा देवी, बनकटिया, नंदा खाट जैसी प्रमुख हिमालय चोटियों के दर्शन होते हैं। इसके अलावा कपकोट, महरगाड़ और नाकुरी जैसे सुंदर गांवों का विहंगम दृश्य भी यहाँ से दिखाई देता है।
यह स्थान न केवल आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराता है, बल्कि वन्य जीव-जंतुओं, अद्वितीय जैव विविधता और शुद्ध पर्वतीय वातावरण के कारण साहसिक पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।
कैसे पहुंचे शिखर मूलनारायण मंदिर ?
शिखर मंदिर पहुँचने के लिए यात्रियों को पहले बागेश्वर से होकर कपकोट पहुँचना होता है। इसके बाद शामा-मुनस्यारी मार्ग होते हुए वाहन से खड़लेख तक पहुँचा जा सकता है, जहाँ से शिखर धाम की पैदल यात्रा प्रारंभ होती है। जो करीब 7 से 10 किलोमीटर की है। वैकल्पिक रूप से, धरमघर-नाकुरी पट्टी मार्ग से भी पैदल यात्रा की जा सकती है। यहाँ की खड़ी चढ़ाई प्रकृति के मध्य पत्थरों को तरासकर बनाये गए सुन्दर खडंचे से पूरी होती है।
धार्मिक पर्यटन की ओर बढ़ता कदम
शिखर मूलनारायण मंदिर को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयास जारी हैं। यहाँ की आध्यात्मिकता और नैसर्गिक सौंदर्य इसे उत्तराखण्ड के उन स्थानों में शामिल करते हैं जहाँ धार्मिक श्रद्धा और साहसिक पर्यटन की एक साथ संभावनाएं मौजूद हैं।
यहाँ हाल ही में सरकार द्वारा शिखर मंदिर तक प्रकाश के लिए बिजली पहुंचा दी गई है, जिससे यहाँ प्रकाश के अभाव में रात को होने वाली समस्याओं से निजात मिली है।
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निष्कर्षतः शिखर मूलनारायण मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, यह एक जीवन अनुभव है, जहाँ श्रद्धा, प्रकृति और आत्मिक शांति तीनों का अद्भुत संगम होता है। यदि आप उत्तराखण्ड के अविदित लेकिन आध्यात्मिक ऊर्जा वाले स्थलों की यात्रा करना चाहते हैं, तो शिखर मूलनारायण धाम आपके यात्रा-पथ पर अवश्य होना चाहिए। हाँ, हमें इस बात को भी ध्यान रखना होगा कि जब यहाँ आएं पूरे भक्तिभाव और आत्मशुद्धि के साथ आएं। यही भाव आपकी इस कठिन यात्रा को सफल बनाएंगे।