कोटगाड़ी मंदिर: जहाँ मिलता है 5 पुश्तों तक का न्याय।

On: Friday, June 6, 2025 7:11 PM
kotgari mandir pithoragarh

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के सुरम्य अंचल में बसा पांखू नामक स्थान न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां स्थित कोटगाड़ी मंदिर (Kotgari Mandir) भी लोगों की आस्था और विश्वास प्रमुख केंद्र है। माता कोकिला (कोटगाड़ी) का यह ऐसा शक्तिपीठ है जहाँ फरियादी बिना वकील और दलील के न्याय पाने के लिए आता है, माता उसे समय पर उचित न्याय देती है। इसीलिये माता पूरे उत्तराखंड में ‘न्याय की देवी’ के रूप में ख्याति प्राप्त हैं। 

स्थान और पहुंच

Kotgari मंदिर बेरीनाग और डीडीहाट के बीच स्थित है। पूर्वी रामगंगा के तट पर बसे थल पुल को पार कर जब हम चौकोड़ी और कोटमन्या की ओर बढ़ते हैं, तो प्रकृति की गोद में बसा पांखू आपके स्वागत को तैयार मिलता है। यहीं सड़क से करीब 200 मीटर ऊपर स्थित है प्रसिद्ध कोटगाड़ी देवी का यह पवित्र मंदिर।

मंदिर की विशेषताएं और मान्यताएं

कोटगाड़ी मंदिर में भगवती को सात्विक वैष्णवी रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर कई मायनों में अद्वितीय है। यहां देवी की मूर्ति में योनि उकेरी गई है, जिसे परंपरानुसार ढंका जाता है। मंदिर परिसर में बागादेव के रूप में पूजित दो भाई-सूरजमल और छुरमल के भी मंदिर हैं। मुख्य मंदिर केआसपास ठहरने हेतु कमरे बने हैं।

कुमायूं में न्याय की देवी कोटगाड़ी माता की विशेष मान्‍यता है, मान्यताओं के अनुसार यहां सताये को न्याय एक दिन अवश्य मिलता है। लोगों की माने तो सुप्रीम कोर्ट से भी निराश जन यहां न्‍याय पाता है। 

जब देवी खुद करती हैं न्याय

यह कोई कोरी मान्यता नहीं, वर्षों की अनुभूतियों और प्रमाणित घटनाओं से जुड़ी आस्था है। मान्यता है कि अगर आरोपी सच में अपराधी है तो माता उसे या उसके प्रियजनों तक को दंड अवश्य देती हैं। लेकिन यदि फरियादी ही झूठा होता है, तो माता उससे भी वैसी ही कठोरता से निपटती हैं। इसलिए लोग कोटगाड़ी माता के दरबार में बहुत सोच-समझकर और पूरी सच्चाई के साथ ही शिकायत लेकर आते हैं।

यह मंदिर कुमाऊँ के न्यायकारी देवालयों में प्रमुख स्थान रखता है। यहाँ भक्तजन अपने जीवन की विपदाओं, अन्यायों, कष्टों और कपटों से मुक्ति पाने के लिए देवी से प्रार्थना करते हैं।

लोक मान्यता है कि यहां पाँच पुश्तों तक का न्याय देवी स्वयं करती हैं। पहले जहां लोग सीधे देवी के सम्मुख ‘घात’ लगाकर न्याय की गुहार लगाते थे, वहीं अब लोग पत्र या स्टाम्प पेपर के माध्यम से अपनी बात देवी तक पहुँचाते हैं। यह एक अद्वितीय लोक परंपरा है, जिसमें न्याय की आस सीधे देवी से की जाती है।

मंदिर का इतिहास और आयोजन

कोटगाड़ी गांव मूल रूप से जोशी ब्राह्मणों का था। पौराणिक मान्यता है कि कोकिला माता यहां स्वयं प्रकट हुई थीं और अपने भक्तों के बीच निवास करती थीं। माता ने पास के दशौली गांव के पाठक ब्राह्मण को मंदिर में पूजा करने का आदेश दिया। आज भी उनके वंशज मंदिर में पूजा करते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।

प्रत्येक वर्ष चैत्र व अश्विन माह की अष्टमी को, तथा भादों माह की ऋषि पंचमी पर यहां भव्य मेलों का आयोजन होता है। इन अवसरों पर दूर-दूर से श्रद्धालु देवी के दर्शन और न्याय की आस लिए यहां पहुंचते हैं।

पर्यावरण संरक्षण में देवी की भूमिका

कोटगाड़ी माता की आस्था केवल न्याय तक सीमित नहीं है, बल्कि उनका उपयोग पर्यावरण संरक्षण के लिए भी हुआ है। कई गांव अपने निकटवर्ती वनों को माता को कुछ वर्षों के लिए चढ़ा देते हैं और इस कारण कोई भी लोग इस वन से चारापत्ती, कच्चे पेड़ कोई नहीं काटता। माता का भय और आस्था वनों की रक्षा का अभेद्य कवच बन गया है।

कोटगाड़ी देवी केवल एक आस्था नहीं, बल्कि लोगों के जीवन की अंतिम उम्मीद हैं। न्याय की देवी के रूप में उनकी मान्यता हर वर्ष सैकड़ों-हजारों श्रद्धालुओं को उनकी ओर खींच लाती है। यहां आकर यह यकीन हो जाता है कि जब इंसानी कानून चुप हो जाते हैं, तो देवी का दरबार बोलता है और वहां सच्चे को न्याय अवश्य मिलता है।

 

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