झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी: लोक की पीड़ा से उपजा अमर गीत।

On: Monday, June 9, 2025 10:49 PM
झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी

उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं यहाँ के लोकगीत। ये न केवल मनोरंजन का माध्यम होते हैं बल्कि इनमें जनजीवन की भावनाएं, मान्यताएं और परिवेश गहराई से रचे-बसे होते हैं। ऐसा ही एक लोकगीत है “झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी”, जिसे कुमाऊं और गढ़वाल में वर्षों से गाया और सुना जाता रहा है।

गीत की पंक्तियों में बेटी की मासूम अपील

गीत की शुरुआत होती है एक मासूम और भावनात्मक मनुहार से, जिसमें एक बेटी अपने पिता से कहती है:

झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी, लागला बिलौरी का घाम।

यानी पिताजी मुझे छाना-बिलौरी गांव में मत ब्याहना। क्योंकि मुझे यहाँ की तेज धूप बहुत सतायेगी

बेटी को चिंता सता रही है कि छाना-बिलौरी में बहुत तेज धूप लगती है, जिससे वह बीमार हो सकती है। यही कारण है कि वह वहां शादी करने से बचना चाहती है। गीत की पंक्तियों में जो लोक भाषा और प्रतीक हैं, वे भावनाओं को अत्यंत प्रभावी ढंग से प्रकट करते हैं:

  • हाथ दाथुली हाथ रै जाली – हाथ की दराती हाथ में ही रह जाएगी।

  • चूलै की रोटी चूलै में रौली – रोटी चूल्हे में ही रह जाएगी।

  • हाथै कि कुटली हाथै में रौली – हाथ में लिया कुदाल हाथ में ही रह जायेगा।

  • हाथ क मुशल हाथ में रौली – हाथ में लिया मुशल हाथ में की रह जायेगा। 
  • फूल जैसी म्यर मुखड़ी – मैं फूल जैसी हूं, मुझे वहां मत भेजो। 

  • चेली मैं तुमरी भली-भली – मैं आपकी एक अच्छी बेटी हूँ।

यह गीत पहाड़ की पीड़ा से उपजा एक अमर गीत है, जो यहाँ की मातृशक्ति की आवाज बन कर उभरा था। 

कुमाऊँ रेजिमेंट और यह लोकधुन

लोगों में छाना बिलौरी गीत धुन इतनी लोकप्रिय हुई कि इसे कुमाऊँ रेजिमेंट ने अपने बैंड धुन में शामिल किया है।
गणतंत्र दिवस परेड में कर्त्तव्य पथ पर, बागेश्वर उत्तरायणी मेले जैसे अनेक महत्वपूर्ण समारोहों में जब रेजिमेंट बैंड यह धुन बजाता है, तो लोग भावुक हो जाते हैं।

गीत की लोकप्रियता और आलोचना

इस गीत को सबसे पहले लोकगायिका बीना तिवारी ने 1963 में आकाशवाणी में प्रस्तुत किया था। उनकी आवाज़ में दर्द, करुणा और नैसर्गिक सौंदर्य का समावेश था, जिसने इस गीत को आत्मा दी। 1970-80 के दशक में जब प्रसिद्ध लोकगायक मोहन सिंह रीठागाड़ी ने इस गीत को गाया, तो यह उत्तराखंड के गांव-गांव में गूंजने लगा। परंतु इसके साथ ही एक नकारात्मक प्रभाव भी सामने आने लगा। छाना-बिलौरी जैसे सुन्दर और संपन्न गांवों की छवि ऐसी छवि बन गई कि कुछ लोग वहां अपनी बेटियों के विवाह करने से कतराने लगे।

गोपाल बाबू गोस्वामी का जवाबी गीत

इस नकारात्मक छवि को तोड़ने के लिए, लोकगायक गोपाल बाबू गोस्वामी ने एक नया गीत प्रस्तुत किया:

छाना बिलौरी के भल लागूं, छाना बिलौरी का ज्वाना।
दी दिया बौज्यू छाना बिलोरी, नि लांगना हो घाम।

उन्होंने इस गीत में स्पष्ट किया कि छाना-बिलौरी की छवि को गलत तरीके से बदनाम किया गया है। यह क्षेत्र सुंदर, समृद्ध और खुशहाल है। पिता जी मुझे छाना-बिलौरी ब्याह देना, यहाँ घाम यानि धूप नहीं सताती है।

छाना-बिलौरी की वास्तविक तस्वीर

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के छौना और बिलौरी दो अलग-अलग गांव है। पलायन की मार से कोषों दूर ये गांव वास्तव में प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर से भरपूर है। यहां की जलवायु, लोग, कृषि व्यवस्था और पारंपरिक जीवनशैली, उत्तराखंड के अन्य हिस्सों की तरह ही संतुलित और समृद्ध है।

निष्कर्ष

“झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी” एक ऐसा लोकगीत है जिसमें एक बेटी के भाव और समाज की सोच दोनों का प्रतिबिंब है। यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक युग की संवेदनाओं का दर्पण है। और यही है उत्तराखंड की लोकसंस्कृति की ताकत जहां गीतों में सिर्फ सुर और ताल नहीं, संवेदनाएं और समाज की परतें भी गूंजती हैं।

Jhan diya boju lyrics in hindi : इस गीत के लिरिक्स पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ – छाना बिलौरी झन दिया बौज्यू। 

लोकगायिका बीना तिवारी की आवाज में सुनें मूल गीत –

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now