घी संक्रांति (घी त्यार) उत्तराखंड-हमारी परम्पराएं एवं मान्यताएं।

Admin

Updated on:

उत्तराखण्ड में प्रतिवर्ष भाद्रपद की संक्रांति को ‘घी त्यार’, ‘ओलगिया’ और ‘घी संग्राद’ नाम का लोक पर्व मनाया जाता है। यों तो हर संक्रांति के दिन कोई न कोई लोकपर्व होता है, लेकिन घी त्यार का पर्व लोक खाद्यान्न और पशुधन के साथ उत्सव मनाने का पर्व है। इन दिनों पहाड़ों में खेतीबाड़ी का काम कम होता है, वर्षाकाल चरम पर होता है और पशुधन प्रचुर मात्रा में होता है, साथ ही पूर्व में बोई फसल में अब बालियां भी लगने लगती हैं, सो यह आनन्द का उत्सव है। कहीं कहीं आज के दिन मडुवे की बाली को भी दरवाजे पर लगाया जाता है। लोकोक्ति है कि जो आज घी नहीं खाता, वह अगले जन्म में गनेल बनता है, इसका कारण यह रहा होगा कि पशुधन और लोक खाद्यान्न की प्रचुरता का आनन्द लेना अनिवार्य करने के लिए यह मिथक गढ़ा गया होगा। (Ghee Sankranti)

घी त्यार की मान्यताएं :

  • इस दिन सभी को घी का सेवन करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता है, उसे अगले जन्म में घोंघे के रूप में पैदा होना पड़ता है।
  • घी का सेवन करने से ग्रहों के अशुभ प्रभावों से बचा जा सकता है।
  • घी को शरीर पर लगाने से बरसाती बीमारियों से त्वचा की रक्षा होती है।
  • सिर में घी रखने से सिर की खुश्की नहीं होती।

घी त्यार एक ऐसा लोकपर्व है जो खेती और पशुपालन से जुड़ा है। यह वह समय है जब वर्षा के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में अंकुर आना शुरू हो जाते हैं। किसान अच्छी फसल की कामना करके जश्न मनाते हैं।

घी संक्रांति पर नौनेक चढ़ाने की परम्परा

आज के दिन द्याप्ता थान में नौनेक भी चढ़ाया जाता है, नौनेक का अर्थ है नया नेग, अर्थात जो भी अनाज खेतों में उपजा है, उसे सबसे पहले अपने देवता को अर्पित करना, मंदिरों में नौनेक चढ़ाने के बाद ही इनका उपभोग होता है। आज नौनेक में घ्वघ (मक्का), पीनालू के गाबे, मूली, अखरोट, ककड़ी आदि चढ़ाया जाता है, यह लोकदेवता के प्रति रहवासियों का कृतज्ञता ज्ञापन है।

घी संक्रांति पर ओलग देने की प्राचीन परम्परा

चन्द राजाओं के समय में आज के दिन राजा और थोकदारों को ओलग देने की भी रीत थी। आज के दिन लोग इनको दस्तकारी की चीजें, पशुधन, लोक खाद्यान्न आदि देते थे, जिसे ओलग देना कहते थे, कालान्तर में यह सब अपने मान्य को भेंट किया जाने लगा, इसलिए इसे ओलगिया भी कहते हैं।
लोक पकवानों में आज मुख्यतः गाबे और मूली की सब्जी बनती है और साथ में बेडूवा रोटी (पिसी मास की दाल की भरी रोटी) तथा लसप्सी खीर, जिसमें घी डालकर खाया जाता है। साथ ही आज के दिन तालू, ठोड़ी और कोहनी में घी मला जाता है और घी का टीका माथे पर लगाया जाता है।

घी संक्रांति – बागेश्वर और पिथौरागढ़ के इलाकों में

सरयू पार के इलाकों (पिथौरागढ़ और बागेश्वर) में शेष पहाड़ में संक्रांति के दिन मनाए जाने वाले अधिकतर त्यार मसान्ति को ही मनाए जाते हैं। कहा जाता है कि रात्रि में त्यौहार खाकर लोग संक्राति को बागेश्वर के संगम में स्नान के लिए जाते थे। इसलिये इस इलाके में सारे पर्व मसान्ति को ही मनाये जाते हैं।
यह लोकपर्व लोक खाद्यान्न और पशुधन की प्रचुरता का आनन्द लेने वाला पर्व है।

सभी लोग इसका आनन्द उठाये और सभी को इस लोकपर्व की सपरिवार शुभकामनायें।
तुमरी धिनाली, बची रौ, बनी रौ, जय हिमाल।

Ghee Sankranti Wishes and Quotes | घी संक्रांति – घी त्यार की शुभकामनायें।


लेख – स्व० श्री पंकज महर जी।

Leave a comment

साक्षी और महेंद्र सिंह धोनी पहुंचे अपने पैतृक गांव उत्तराखंड। शिवलिंग पूजा – क्या आप जानते हैं कहाँ से शुरू हुई लिंग पूजा ? नॉनवेज से भी ज्यादा ताकत देती है ये सब्जी ! दो रात में असर।