Chunya Festival: उत्तराखंड सांस्कृतिक रूप से एक समृद्ध राज्य है, जहाँ लोगों की अपनी-अपनी परम्पराएं हैं, अपनी बोली-भाषाएँ हैं, अपना-अपना रहन-सहन का तरीका और अपने खानपान हैं। वहीं अपने-अपने क्षेत्रों के तीज-त्योहार को मनाने की परम्पराएं भी अलग-अलग हैं। इसी का एक उदाहरण यहाँ मनाये जाने वाले मकर संक्रांति का त्योहार है, जिसे यहाँ के लोग अपने-अपने क्षेत्रों में अपने तरीके से मनाते हैं।
गढ़वाल में मकर संक्रांति के अवसर पर एक विशेष त्योहार मनाया जाता है, जिसे स्थानीय लोग ‘चुन्यां त्यार’ कहते है। यह पर्व जोशीमठ वर्तमान में ज्योतिर्मठ के पैनखंडा क्षेत्र के 50 से अधिक गांवों में बड़े धूमधाम और परंपरागत तरीकों के साथ मनाया जाता है। ‘चुन्यां’ एक ख़ास तरीके का पकवान होता है, जिसे मकर संक्रांति के अवसर पर घुघुतिया त्योहार की भांति कौओं को भोग लगाने की परम्परा है।
चुन्यां त्यार की तैयारी सामूहिक रूप से महिलाएं दो-तीन दिन पहले से सात प्रकार के अनाजों की कुटाई/पिसाई के साथ प्रारम्भ कर देती हैं। जिसमें प्रमुख रूप से चांवल, काली दाल, झंगोरा आदि प्रमुख होते हैं। इन अनाजों का आटा तैयार कार लिया जाता है, जिसे पीठा कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन इस पीठे को गुड़ के घोल के साथ मिलाकर तेल में तलते हैं और चुन्या पकवान तैयार होता है।
चुन्या त्योहार की परम्परायें
मकर संक्रांति की सुबह सबसे पहले इस पकवान को कौओं को खिलाये जाते हैं। मान्यता है इस दिन कौवे विशेष रूप से बच्चों के हाथ से चुन्या खाने आते हैं। इसीलिये बच्चे सुबह-सुबह अपने घर में बने चुन्या का भोग कौवों को लगाते हैं। कौओं को बुलाते हुए वे कहते हैं – ‘ले कौवा चुन्या, हमको दे पुन्या।’
इस त्योहार के अवसर पर चुन्या के घोल से लोग अपने घरों की दीवारों पर सूर्य देव और उनके सेवक दल के अपने अँगुलियों से रेखांकित चित्र अंकित करते हैं, जो सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने के रूप में प्रदर्शित करते हैं।
चुन्या त्योहार का इन्तजार यहाँ हर ध्याणी यानी विवाहित बेटी को होता है। वे इस अवसर पर अपने मायके आती हैं और लोक पकवानों का आनंद लेती हैं। वहीं इस पर्व पर बने पकवानों को अपने सगे-सम्बन्धियों और मित्रों को भेजने की परम्परा है।
चुन्या त्योहार का महत्व
- इस त्योहार पर सूर्य पूजा का विशेष महत्व है। अपने पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ सूर्य पूजा की जाती है।
- त्योहार पर बनने वाले मीठे पकवानों का ख़ास महत्व है। लोग एक दूसरे को पकवान का आदान-प्रदान कर सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देते हैं।
- ध्याणियों को मायके बुलाने की परम्परा उन्हें अपनेपन का अहसास कराती हैं।
यह थी जोतिर्मठ यानी जोशीमठ के पारम्परिक लोक पर्व ‘चुन्या त्योहार‘ के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी। आईये हम इन पर्वों को मनाएं और अपने परम्परा और रीत-रिवाजों को निर्वहन कर संरक्षित करने का प्रयास करें।