Kumbh Mela : कुंभ, भारत का सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक मेला है, जो सनातन धर्म की आस्था, परम्परा और संस्कृति का प्रतीक है। इसका आयोजन प्रयागराज में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम स्थल पर, उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर, नासिक में गोदावरी के तट पर और हरिद्वार में गंगा किनारे आयोजित होता है। चारों स्थानों पर यह मेला तीन साल के अन्तराल पर बारी-बारी लगता है। अर्थात एक स्थान विशेष पर इसका आयोजन बारह वर्ष में एक बार होता है। प्राचीन समय में साधु समाज को आपसी विचार-विमर्श के लिए यह अन्तराल बेहद लम्बा लगता था, अत: 1837 में पहली बार हरिद्वार में छ: साल बाद होने वाले अर्द्ध-कुम्भ की शुरूवात की गई। प्रयाग में इसका आयोजन पहली बार 1940 हुआ।
कैसे होता है कुंभ मेले का निर्धारण
कुंभ मेला किस स्थान पर, किस माह में, किस तिथि से आरम्भ होगा, इसका निर्णय सूर्य, चन्द्रमा और गुरू का विभिन्न राशियों में आवागमन के आधार पर किया जाता है। इन्हीं तीन ग्रहों की स्थिति विशेष के कारण प्रयागराज में यह मेला माघ महीने में (जनवरी-फ़रवरी), हरिद्वार में फागुन और चैत्र (फ़रवरी, मार्च और अप्रैल), उज्जैन में बैसाख (मई) और नासिक में श्रावण महीने अर्थात जुलाई में लगता है।
यानी जब सूर्य एवं चन्द्रमा मकर राशि में होते हैं और गुरु वृष राशि में होता है, तब प्रयागराज में कुंभ का आयोजन होता है। वहीं जब सूर्य मेष राशि, गुरु कुम्भ राशि में होते हैं तब कुम्भ मेले का आयोजन हरिद्वार में होता है। उज्जैन में कुम्भ मेला तब लगता है जब सूर्य और गुरु दोनों सिंह राशि में होते हैं वहीं जब सूर्य सिंह राशि एवं गुरु सिंह या कर्क राशि में होते हैं तब नासिक में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
अर्द्ध कुंभ
अर्द्ध कुम्भ का आयोजन 6 वर्ष के अंतराल पर किया जाता है, जो हरिद्वार और प्रयागराज में ही आयोजित होता है।
पूर्णकुंभ
पूर्ण कुम्भ का आयोजन 12 वर्ष में होता है, जो सिर्फ प्रयागराज में होता है।
महाकुंभ
प्रयागराज में 144 वर्ष के अंतराल के बाद होने वाले कुम्भ को महाकुम्भ कहते हैं।
कुंभ का आयोजन सिर्फ चार जगह पर क्यों होता है
केवल इन्हीं नगरों में कुम्भ का आयोजन क्यों होता है, इस तथ्य के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि एक बार देवों और दानवों ने मिल कर अमृत प्राप्ति के लिए क्षीर सागर का मंथन किया। अनेकों अमुल्य व अतुल्य पदार्थों की प्राप्ति के पश्चात जब अमृत-कुम्भ प्रगट हुया तो उस पर अधिकार जमाने के लिए देवों और दानवों में बारह वर्ष तक युद्ध चला। कुम्भ की छीना झपटी के दौरान अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थलों पर गिरी। इसी अमृत की चाह में असंख्य लोग इन स्थलों की ओर खींचे चले आते हैं।
एक अन्य कथा यह भी है कि शंखासुर नामक एक राक्षस ने सागर की तलहटी से मिट्टी में रहने वाले जीवों (दीमक) की सेना को वेदों को नष्ट करने भेजा। ज्ञान एवं शक्तिशाली मंत्रों के भंडार वेदों के नष्ट होते ही देवों की शक्ति क्षीण हो गई और असुरों से हार कर वे कैलास पर्वत पर जा छुपे। देवों के हारने से चारों ओर अराजकता छा गई । नैतिकता का नाश हो गया, अनाचार फैल गया और धरती पर हाहाकार होने लगी। इस स्थिती से व्यथित हो ऋृषियों और मुनियों ने भगवान् विष्णु से उद्धार करने की गुहार लगाई। विष्णु जी ने मुनि-जगत् को कहा– ” आप सब मिलकर अपनी शक्तियों को केन्द्रित करें और ध्यान पूर्वक एक-चित्त हो कर वेदों का पुन: निर्माण करें। जब आपका कार्य समाप्त हो जाए तो प्रयाग जाकर संगम-तट पर मेरा इंतज़ार करें। मैं समस्त देवों को लेकर आप से वहीं मिलूंगा।“
मुनिगण विष्णु जी के आदेश के पालन में जुट गए। इस दौरान विष्णु जी ने एक बड़ी मछली का रूप धारण कर शंखासुर को मार डाला और देवों की मदद से असुरों की सेना को हरा दिया। तदोपरांत वे ब्रह्मा, शिव और सभी देवों को लेकर प्रयाग पहुँचे। यहां पर पुन:निर्मित हुए वेदों के ज्ञान को सम्पूर्ण जगत् के हित में प्रयोग करने केलिए उन्होंने ‘अश्वमेघ यज्ञ‘ किया जो बारह वर्ष तक चलता रहा। यज्ञ समाप्ति पर मुनियों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे भविष्य में हर बारहवें वर्ष एक माह के लिए प्रयाग में सभी देवों सहित अवतरित हो। विष्णु जी ने प्रार्थना स्वीकार की और प्रयाग को तीरथ-राज की उपाधि दी तथा कहा कि संगम तट पर ध्यान-अर्चना में बिताया गया एक दिन अन्य स्थानों पर कमाए गए दस सालों के पुण्य के समान होगा।
महत्व
कुंभ में स्नान का बेहद महत्व है। मान्यता है कि कुंभ स्नान करने के मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विशेषता
महाकुंभ में देश ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु इसकी छटा को देखने के लिए पहुँचते हैं। जहाँ सनातन धर्म की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का अद्भुत महासंगम देखने को मिलता है।
Maha Kumbh 2025 Dates
- 13 जनवरी (सोमवार)- स्नान, पौष पूर्णिमा
- 14 जनवरी (मंगलवार)- अमृत स्नान, मकर सक्रांति
- 29 जनवरी (बुधवार)- अमृत स्नान मौनी अमावस्या
- 3 फरवरी (सोमवार)- अमृत स्नान, बसंत पंचमी
- 12 फरवरी (बुधवार)- स्नान, माघी पूर्णिमा
- 26 फरवरी (बुधवार)- स्नान, महाशिवरात्रि
Mahakumbh 2025 : प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी 2025 से हो गई है, जो 26 फ़रवरी 2025 को महाशिवरात्रि तक चलेगा। प्रयाग कुम्भ की विस्तृत जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जायें – महाकुंभ 2025
यह थी भारत के सबसे बड़े और पवित्र धार्मिक मेला कुंभ के बारे में कुछ ख़ास जानकारी। आईये सनातन के इस महापर्व में हम भी यहाँ की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में अपना योगदान दें।