गढ़िया राजपूतों का इतिहास: राजस्थान से उत्तराखंड तक का गौरवशाली प्रवास

On: Friday, August 15, 2025 6:03 PM
History of gariya surname

इतिहास में कई ऐसे प्रसंग मिलते हैं, जब परिस्थितियों और शासकों के अत्याचारों ने लोगों को अपनी जन्मभूमि छोड़ने पर विवश कर दिया। वर्तमान में उत्तराखंड में रहने वाले गढ़िया राजपूतों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसकी जड़ें राजस्थान के किलों से लेकर उत्तराखंड के सुदूरवर्ती पहाड़ी गाँवों तक फैली हुई हैं। इस पोस्ट में हम गढ़िया राजपूतों के इतिहास से रूबरू होंगे, जहाँ उन्होंने अपने धर्म और स्वाभिमान की रक्षा के लिए विभिन्न कठिनाईयों को पार करते हुए नए जीवन की शुरुआत की और आज एक नए इतिहास को लिख रहे हैं। 

मुगल काल की पृष्ठभूमि

यह घटना उस दौर की है जब भारत पर मुगल आक्रांता औरंगजेब का शासन था। पूरा देश मुगलों के अधीन था और उनके अत्याचारों से यहाँ के लोग त्रस्त थे। औरंगजेब ने अनेक राजाओं को परास्त कर उनके राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया। धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही स्तरों पर क्रूर शासन व्यवस्था के कारण लोगों का जीवन कठिन हो गया था। जबरन धर्म परिवर्तन जैसे कुकर्म इस अन्यायी शासक ने शुरू कर दिए थे। 

राजस्थान से जोशीमठ की ओर पलायन

इसी समय राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में रहने वाले रजवाड़ परिवार भी औरंगजेब के अत्याचारों से अछूती नहीं रहे। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें अपने पैतृक स्थान को छोड़कर पलायन करना पड़ा। यह परिवार हिमालय की ओर निकल पड़ा। विभिन्न प्रकार के कष्टों और बाधाओं को पार करते हुए इस परिवार ने सबसे पहले जोशीमठ (वर्तमान में ज्योतिर्मठ) को अपना पहला पड़ाव बनाया। फिर यहाँ से वे अपने आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अस्कोट (पिथौरागढ़) पहुंचे। यहाँ भी इन रजवाड़ों को परेशानियों का सामना करना पड़ा और उन्होंने इस स्थान को भी छोड़ने का निर्णय लिया। 

अस्कोट से तोरती गढ़वाल की ओर

अपने बढ़ते परिवार के साथ गढ़िया रजवाड़ों ने अस्कोट से भी पलायन किया। जनश्रुति के अनुसार अस्कोट से इन रजवाड़ों की विदाई बड़े धूमधाम और भावपूर्ण तरीके से हुई। इस विदाई में अस्कोट की राजमाता ने परिवार को फल-फूलने का यह आशीर्वाद दिया था -“तू जां ले जालै, त्यार चुवक जस ब्यू फ़ैल जौ” अर्थात तुम जहाँ भी जाओ, वहां आपका परिवार चुवे (चौलाई) के बीज की तरह पनप जाये। 

इस आशीष के साथ गढ़िया रजवाड़ एक लम्बी यात्रा पर निकले पड़े और यहाँ से उनके साथ जोशी (पुरोहित) और रक्षक के तौर पर राजपूत ताड़ी (तड़ागी) भी चले। एक लम्बी दूरी तय करने के बाद यह यात्रा चमोली जिले के तोरती गढ़वाल (झिंगरकोट) में समाप्त हुई और उन्होंने यहीं पर अपना पड़ाव बनाया। यहाँ से ही इन्हें उनके मूल नाम ‘गढ़ी‘ यानी ‘गढ़िया‘ के नाम जाना जाने लगा। (Gariya Surname Origin) जिसका अर्थ होता है- गढ़ (किलों) में रहने वाले। इन्हें स्थानीय लोग ‘गढ़िया गुँसाईं’ नाम से सम्मान देने लगे।

कुमाऊँ की ओर पलायन 

पारिवारिक वृद्धि होने के कारण चार बड़े भाईयों ने झिंगरकोट (तोरती गढ़वाल) से भी पलायन करने का निर्णय लिया और अपने साजो-सामान के साथ कत्यूर घाटी होते हुये बागेश्वर जिले के हरसीला नामक स्थान पर आ गये और साथ में उनकी कुलदेवी माँ भगवती भी साथ चली।

गढ़वाल से आने वाले ये चार भाई थे –

  1. भीमल सिंह (भीम सिंह)  
  2. कोमल सिंह (कल्याण सिंह) 
  3. जयमल सिंह (जैमल सिंह )
  4. हरमल सिंह  

इनमें सबसे बड़े भाई भीमल (भीम) सिंह थे। उसके बाद कल्याण, जयमल और सबसे छोटे हरमल थे। कुछ समय हरसीला में रहने के बाद उनके लिए संसाधनों की कमी होने लगी। फिर आपसी सहमति से सभी ने अलग-अलग घाटियों की ओर जाने का निर्णय लिया। बड़े भाई भीम सिंह की सलाह पर दूसरे नंबर के भाई कल्याण सिंह को नजदीक के ही कनलगढ़ घाटी की ओर भेजा गया।   

तीसरे नंबर के भाई जयमल ( जैमल सिंह) को हरसीला में ही स्थापित कर भीम सिंह अपने सबसे छोटे भाई हरमल सिंह को साथ लेकर सरयू के किनारे-किनारे उत्तर दिशा की ओर निकल पड़े और साथ में कुलदेवी भगवती चलती रही। एक पड़ाव उनका उत्तरोड़ा भी रहा। उसके बाद आगे बढ़ते हुए वे सरयू के किनारे एक बड़े चौड़े भू-भाग वर्तमान कपकोट में भी रहे। लेकिन कंटीली और रेतीली भूमि भी उन्हें रास नहीं आई और इस जगह को भी छोड़ दिया। 

कपकोट से आगे बढ़ते हुए वे बेलंग गाड़ होते हुए बांज, बुरांश के झुरमुटों के बीच एक खूबसूरत समतल भूमि पर पहुंचे। उन्होंने इस जगह को अपने अनुकूल पाया। यह स्थान था – पोथिंग। एक अनुमान के आधार पर गढ़िया लोगों के पूज्य पितर श्री भीम सिंह पोथिंग में सन 1680-1710 के मध्य स्थापित हो गए थे। वर्तमान में पोथिंग गांव ही गढ़िया रजवाड़ों का मूल गांव माना जाता है। (History of Gariya Surname)

पोथिंग में धीरे-धीरे विभिन्न तोकों में खेत-खलिहान बनाकर जीवन यापन को बेहतर बनाने की कोशिश चलती रही। साथ आयी कुलदेवी माँ भगवती को स्थापित किया गया और बड़े भाई होने के नाते पूजा-अर्चना का दायित्व संभाला। देवी पूजा निर्वहन के लिए गढ़िया परिवार के तीसरे पुस्त द्वारा अन्य वर्ग के मित्रों, सलाहकारों, जवाबदारियों को आमंत्रित कर बसाया गया। जिनमें वर्तमान में जोशी, दानू, कन्याल, बिष्ट, मेहता, फर्स्वाण , कुंवर, दास एवं लोहार परिवार निवासरत हैं। 

परिवार का विस्तार और नए गाँव

पोथिंग आये बड़े भाई भीम सिंह के दो सुपुत्र बलाव सिंह और अमर सिंह हुए और इन दोनों के पांच-पांच पुत्र हुए। पिता भीम सिंह और पुत्र बलाव सिंह गढ़िया द्वारा पोथिंग में व्यवस्था सुधार पर सराहनीय कार्य किये। कुलदेवी माँ भगवती की हर वर्ष भाद्रपद अष्टमी पर पूजा प्रारम्भ की। जिसमें सभी भाइयों की सहभागिता होती थी। पोथिंग की बढ़ती आबादी के कारण परिवारों ने आस-पास के तोली, गडेरा, लीली, लखमारा, फरसाली, सीमा, कपकोट, पनौरा आदि गाँवों में भी बसना शुरू कर दिया।

दूसरी ओर, कनलगढ़ भेजे गए भाई कल्याण सिंह का परिवार भी फल-फूलता गया। जिनके वर्तमान में कन्यालीकोट, सुमटी और बैसानी जैसे स्वतंत्र गांव हैं। 

वहीं, हरसिला में रहने वाले जयमल सिंह के परिवार वृद्धि पर वे चीराबगड़, पंद्रहपाली, पुंगर घाटी के किरोली, रीमा, नाकुरी आदि गांवों में चले गए। समय के साथ इन दोनों घाटियों में भी गढ़िया परिवार का विस्तार होता गया।

सामाजिक और राजनीतिक योगदान  

हिन्दू राजपूत परिवारों से संबंध रखने वाले गढ़िया लोगों ने अधिकतर सेना में रहकर देश सेवा का कार्य किया है। शैक्षिक, अर्द्ध सैनिक बल एवं अन्य क्षेत्रों में भी गढ़िया लोग आगे रहे हैं। वहीं देश की आजादी के लिए भी इन लोगों का सराहनीय योगदान रहा है। पोथिंग गांव के स्वर्गीय पान सिंह गढ़िया और स्वर्गीय मथुरा दत्त जोशी जी ने आजाद हिन्द फ़ौज में रहकर देश सेवा का कार्य किया है। वहीं भीम सिंह गढ़िया जैसे कई ऐसे सेना के वीर जवान हैं, जिन्होने अपनी वीरता और बहादुरी के लिए सेना मैडल का गौरव प्राप्त किया है। 

यदि राजनीती के क्षेत्र में बात करें तो बागेश्वर जिले के कपकोट विधानसभा से श्री शेर सिंह गढ़िया विधायक रहे हैं। बाद में उन्हें दर्जा कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया। वहीं वर्तमान विधायक सुरेश गढ़िया भी इसी परिवार के सदस्य हैं। इसी के साथ कपकोट में शिक्षा की अलख जगाने वाले स्वर्गीय प्रेम सिंह गढ़िया, जिन्हें तब लोग ‘प्रेम सिंह पंडित’ के उपनाम से जानते थे, पोथिंग के ही निवासी थे। कपकोट में शिक्षा के क्षेत्र में इनके अमूल्य योगदान के लिए इंटर कॉलेज का नाम इनके नाम प्रेम सिंह गढ़िया राजकीय इंटर कॉलेज कपकोट से जाना जाता है। 

भारतीय बॉक्सिंग कोच 

इस परिवार ने एक भारतीय बॉक्सिंग कोच भी दिया है जिनका नाम है सुन्दर सिंह गढ़िया। तोली जैसे दूरस्थ गांव से निकलकर अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग जगत में देश और राज्य का नाम रोशन करने वाले सुंदर आज भारत के सम्मानित बॉक्सिंग कोचों में गिने जाते हैं। अपनी मेहनत, लगन और खेल के प्रति जुनून के दम पर उन्होंने न केवल कई दिग्गज खिलाड़ियों को तैयार किया, बल्कि भारत को ओलंपिक, एशियाई और वर्ल्ड स्तर पर कई मेडल दिलवाए। वे टोक्यो ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडलिस्ट खिलाड़ी लवलीना बोरगोहाईन के पर्सनल कोच रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने भारत की कई नामी बॉक्सिंग स्टार्स को ट्रेनिंग दी है, जिनमें मैरी कॉम, लवलीना बोरगोहाईन, निखत ज़रीन और कई अन्य दिग्गज खिलाड़ी शामिल हैं। वे 17 से अधिक देशों में भारतीय बॉक्सिंग टीम का नेतृत्व करते हुए देश का नाम ऊँचा कर चुके हैं। वर्ल्ड चैंपियनशिप 2023 में भी लवलीना, सुंदर सिंह गढ़िया के मार्गदर्शन में गोल्ड मेडलिस्ट बनीं, जिससे भारत को वर्ल्ड चैंपियन का गौरव प्राप्त हुआ।

चमोली गढ़वाल का गढ़िया परिवार 

वर्तमान में चमोली गढ़वाल में भी गढ़िया परिवार के लोग रहते हैं। अस्कोट से तोरती गढ़वाल आने के बाद कुछ भाई बागेश्वर की ओर पलायन कर गए और कुछ भाई यहीं चमोली में ही रहने लगे। वर्तमान में यहाँ रहने वाले परिवार उन्हीं की पीढ़ियां हैं। इसके अलावा अस्कोट में ही रह गए भाई वर्तमान में ‘रजबार’ की मान्यता पर वहीं बसे हैं। 

प्रवास मार्ग का ऐतिहासिक नक्शा – राजस्थान → जोशीमठ → अस्कोट → चमोली गढ़वाल → हरसीला → पोथिंग और अन्य गाँवों तक। 

यह थी गढ़िया लोगों के इतिहास से सम्बंधित कुछ ख़ास जानकारी। जो जनश्रुति के आधार पर लिखा गया है। इस जानकारी में गांव के वरिष्ठ लोगों का विशेष सहयोग रहा है। यदि आपको गढ़िया परिवार के लोगों के इतिहास से सम्बंधित कुछ अन्य जानकारियां उपलब्ध है या इस जानकारी में कुछ और जोड़ना चाहते  हैं, तो कृपया आप 9411117737 या admin@ekumaun.com पर संपर्क करें। 

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