Cloudburst-पहाड़ों में क्या हैं बादल फटने के प्रमुख कारण ? यहाँ पढ़ें –

On: Wednesday, August 6, 2025 4:22 PM
Uttarkashi Cloudburst

उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने से विनाशकारी दृश्य देखने को मिल रहे हैं, उन्हें समझना और उसके प्रति सचेत रहना बहुत जरूरी है। सामान्तया ऐसी घटनाओ में सरकारों को दोष देना सही नहीं है। ये एक प्राकृतिक घटना है और प्रकृति पर किसी का जोर नहीं चलता।

क्या है बादल फटना ?

बादल फटना (Cloudburst) एक अत्यंत विनाशकारी प्राकृतिक घटना है, जो विशेष रूप से हमारे जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में देखने को मिलती है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें बहुत ही कम समय में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है, प्रायः 100 मिमी से अधिक बारिश एक घंटे से भी कम समय में सीमित क्षेत्र में गिरती है। यह तीव्र वर्षण (intense precipitation) बाढ़, भूस्खलन (landslide), नदी-नालों का उफान और व्यापक विनाश का कारण बनता है। यह घटना विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालयी क्षेत्रों में बार-बार घटित होती है और इसके पीछे कई भौगोलिक व जलवायविक कारण होते हैं।

पहाड़ों में बादल फटने का मुख्य कारण 

पर्वतीय क्षेत्र, विशेष रूप से हिमालय, बादल फटने की घटनाओं के लिए अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। इसका मुख्य कारण वहाँ की स्थलाकृति (topography) है। जब गर्म और नमीयुक्त हवाएँ पर्वतीय ढलानों से टकराती हैं, तो उन्हें ऊपर उठना पड़ता है। यह प्रक्रिया जिसे orographic uplift कहा जाता है, हवा को तेजी से ठंडा करती है और उसमें उपस्थित जलवाष्प घनीभूत (Condence) होकर अत्यधिक मात्रा में वर्षा के रूप में गिरती है जिसे Orographic Rain कहते है यही स्थिति जब बहुत छोटे स्थान के उपर बनती है, जैसे पहाड़ की घाटी या अपभ्रंश के उपर तो बादल फट जाते हैं यानी बहुत जल्दी cindence होकर बरस जाते हैं उसी तरह जेसै किसी ने भरी पानी की बाल्टी उडेल दी हो । पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान का तीव्र अंतर और वायुमंडलीय अस्थिरता (atmospheric instability) बादल बनने और उनके तीव्र विस्फोट (violent cloud collapse) के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा करती हैं। इसके अलावा, वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से वायुमंडल में अधिक जलवाष्प जमा होता है, जिससे अत्यधिक वर्षा की प्रवृत्ति और तीव्र हो जाती है।

यह भी है कारण

हिमालय की संरचना भी बादल फटने की घटनाओं के लिए एक प्रमुख कारण है। यह संरचना तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित होती है, शिवालिक (Shivalik), मध्य हिमालय (Lesser Himalayas), और महान हिमालय (Greater Himalayas)। शिवालिक सबसे नीचे और नवीनतम पर्वतीय श्रेणी है, जहाँ अत्यधिक कटाव और नदी घाटियाँ पाई जाती हैं। मध्य हिमालय अपेक्षाकृत ऊँचा, अस्थिर, और अधिक ढलानदार क्षेत्र है, जहाँ जनसंख्या घनत्व और मानवीय गतिविधियाँ भी अधिक होती हैं। महान हिमालय सबसे ऊँचाई पर स्थित क्षेत्र है, जहाँ बर्फ़, ग्लेशियर और तीव्र ढलानें होती हैं। इन तीनों क्षेत्रों की स्थलाकृति वर्षा को तीव्र और एकत्रित रूप में नीचे की ओर प्रवाहित करती है, जिससे छोटे क्षेत्रों में जल का तीव्र दबाव बनता है और बादल फटने की स्थिति उत्पन्न होती है।

हिमालय की गंगा घाटी (Ganga Valley) उसकी जलधाराओं के Catchment Area और छोटा क्षेत्र कहूँ तो watershed areas में विशेष रूप से बादल फटने के लिए अत्यंत संवेदनशील हैं जिसे हमने कई बार पहले भी देख और भुगत लिया है। यहाँ मानसूनी हवाएँ दक्षिण से उत्तर की दिशा में तीव्रता से प्रवेश करती हैं और पहाड़ों से टकरा कर अत्यधिक वर्षा करती हैं। गंगा की सहायक नदियाँ जैसे भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी अत्यंत तीव्र ढलानों से होकर बहती हैं, जो कि बादल फटने के बाद अचानक आई बाढ़ (flash flood) को और भी घातक बना देती हैं। इसके अलावा, वनों की कटाई, सड़क निर्माण, तीर्थ पर्यटन, और असंतुलित शहरीकरण ने भूमि को अस्थिर बना दिया है, जिससे वर्षा के प्रभाव और अधिक भयानक हो जाते हैं। पर्वतीय घाटियों की micro-climatic variation भी वर्षा की असामान्यता और अत्यधिक तीव्रता का एक बड़ा कारण बनती है।

स्थलाकृति, जलवायु, और मानवीय हस्तक्षेपों का परिणाम 

बादल फटना न केवल एक मौसमीय घटना है, बल्कि यह उस क्षेत्र की स्थलाकृति, जलवायु, और मानवीय हस्तक्षेपों के सम्मिलित प्रभाव का परिणाम होता है। भारतीय हिमालय अपनी विशेष भौगोलिक संरचना और जलवायु अस्थिरता के कारण इस प्राकृतिक आपदा का केंद्र बना हुआ है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए, इस समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिक पूर्वानुमान प्रणाली, भू-स्थानिक विश्लेषण, सतत विकास योजनाएँ और जन-जागरूकता की अत्यधिक आवश्यकता है। प्राकृतिक आपदाओं से निपटना केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक की सजगता और तत्परता भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है।

उत्तरकाशी में लोगों को सूचित किया जा सकता था 

इसमें जरूरी ये है कि नेताओ से ज्यादा प्रशासन में बैठे लोग अपनी जिम्मेदारियों को समझे, राज्य के मौसम विभाग , उपग्रह केंद्र या जल प्रबंधन विभाग के लोगों कि ये जिम्मेदारी बनती है कि जनता को सजग रखने के लिए सही समय पर उचित सूचना दी जाय। दूर से देखा जाय तो कल धराली में पानी के विनाश से पहले ५ से १० मिनट्स थे कि लोगों को सूचित किया जा सकता था । पहाड़ के दूसरी और बैठे लोगो सिर्फ सीटियां ही बजा सकते हैं। अब जरूरी हैं कि मौसम और जल विभाग हर गावों में एक सायरन कि भी व्यस्था करे ताकि पहाड़ के सामने वाले ढाल पर बैठे लोग आपदा प्रभावितों को सजग कर सके। उत्तराखंड का मौसम और जल विभाग ऐसे समय कहाँ सोया रहता है इसकी भी सुध लेने की जरूरत है।

– इंडोनेशिया से श्री मनीष सेमवाल जी की रिपोर्ट। 

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