सरयू नदी का उद्गम स्थल कहाँ है? जानिए इस महत्वपूर्ण स्थल के बारे में-

On: Thursday, July 10, 2025 9:01 PM
सरयू नदी का उद्गम स्थल

सनातन धर्म में नदियों को केवल जलस्रोत नहीं, बल्कि मोक्षदायिनी, जीवनदायिनी और देवीस्वरूप माना जाता है। इन्हीं दिव्य नदियों में एक है सरयू नदी, जो अपने पौराणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए विशेष रूप से पूजनीय है। सरयू का उल्लेख ऋग्वेद जैसे प्राचीनतम ग्रंथों में मिलता है, जहाँ कहा गया है कि राजा यदु और तुर्वसु ने इसे पार किया था। पाणिनी ने अपनी अष्टाध्यायी में, और शिव महापुराण के सरयू महात्म्य में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।

सरयू नाम सुमंगल मूला, सब सिद्धि करनि हरनि सब शूला‘ – यह पंक्ति इस पवित्र नदी की महिमा को दर्शाने के लिए पर्याप्त है। पुराणों के अनुसार, अनादिकाल में मुनिश्रेष्ठ वशिष्ठ ने कपकोट के समीप स्थित झूनी गांव के सामने तपस्या कर सरयू को मानसरोवर से धरती पर उतारा, और उसे अयोध्या तक प्रवाहित किया। धार्मिक मान्यताओं में सरयू के जल को गंगा के समान पवित्र और मोक्षदायक माना गया है।

पद्मपुराण के उत्तरकांड में भी सरयू नदी का माहात्म्य वर्णित है। कालिदास के रघुवंशम में भगवान राम ने सरयू को जननी समान पूज्य बताया है। सरयू के तट पर अनेक यज्ञों का वर्णन कालिदास ने अपने महाकाव्य में किया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में सरयू को मानसरोवर से उत्पन्न बताया गया है। अध्यात्म रामायण में भी इसी तथ्य का उल्लेख है। सरयू मानसरोवर से निकलती है जिसका एक नाम ब्रह्मसर भी है। तुलसीदास ने रामचरितमानस में सरयू को मानस नन्दनी कहा है।

सरयू का उद्गम स्थल

सरयू नदी का उद्गम स्थल उत्तराखण्ड के बागेश्वर जिले के उत्तरी भाग में स्थित नंदाकोट चोटी की तलहटी से सरमूल (Sarmul) नामक स्थान है। यहाँ से छोटी-छोटी सौ धाराओं में निकलकर सरयू अविरल बहना शुरू करती है। जिस स्थल पर माँ सरयू धरती पर उतरती हैं, उस स्थान को ‘सौ धारा‘ कहते हैं और यह पर माँ सरयू का मंदिर स्थापित है। सौ -धारा से बहते हुए सरयू भद्रतुंगा पहुंचती हैं, जहाँ भगवान शिव, हनुमान और मां सरयू के मंदिर स्थापित हैं।

Origin of Saryu River
सरमूल से निकलती सरयू नदी।

सौ -धारा से आगे बढ़ती हुई विभिन्न लघु हिमालयी नदियों को अपने में समेटती सरयू का मिलन कुमाऊँ की काशी यानि बागेश्वर में गोमती के साथ होता है। यहीं पर बाबा बागनाथ का ऐतिहासिक मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह स्थान मार्कण्डेय ऋषि की तपस्थली है। सरमूल से निकलकर जब सरयू यहाँ पहुँची तो ऋषि मार्कण्डेय अपनी तपस्या में लीन थे और सरयू आगे को नहीं बढ़ पा रही थी। तब भगवान शिव ने यहाँ बाघ का रूप धारण किया और माता पार्वती गाय के रूप में प्रकट हुई। ऋषि की तपस्या भंग करने के उद्देश्य से यहाँ बाघ के रूप में शिव ने गाय (पार्वती) का पीछा किया। गाय के रम्भाने की आवाज सुनकर मार्कण्डेय ऋषि की तपस्या भंग हो गई और सरयू को आगे बढ़ने का रास्ता प्राप्त हो गया। वहीं यहीं पर मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव और पारवती ने दर्शन दिए। 

सरयू का विभिन्न नदियों से मिलन

बागेश्वर से आगे बढ़ने के बाद सरयू का मिलन रामगंगा नदी से होता है और आगे यह रामगंगा के नाम से जानी जाती है । लगभग 130 किलोमीटर आगे बढ़ने पर रामगंगा का मिलन पंचेश्वर में काली नदी (शारदा) से हो जाता है।

इन नदियों के संगम के बाद पुनः कहलाई सरयू

यही काली नदी उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के पास ब्रह्माघाट में घाघरा से मिलती है। घाघरा और काली नदी (शारदा) के संगम के बाद आगे को यह नदी पुनः सरयू कहलाती है।

मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम की जन्मभूमि से अयोध्या इसी सरयू के तट पर स्थित है। यह हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। भगवान राम ने इसी नदी में जल समाधि ली थी।

कैसे पहुंचे सरमूल?

सरयू का उद्गम स्थल बागेश्वर से करीब 80 किलोमीटर दूर पतियासार गांव के समीप स्थित है। बागेश्वर से कपकोट की ओर वाहन से यात्रा शुरू होती है। रास्ते में भराड़ी, सलिंग (जहां तप्तकुंड महादेव मंदिर है), मुनार, ताकुली गांव आते हैं, और अंततः पहुंचते हैं पतियासार। यहीं से वास्तविक यात्रा की कठिन परीक्षा शुरू होती है। पतियासार से पैदल मार्ग शुरू होता है जो झाड़ियों और चट्टानों के बीच से होते हुए बैछमधार गांव तक जाता है। यह मार्ग अत्यंत कठिन और साहसिक है, लेकिन रास्ते में पड़ने वाले नन्दा देवी मंदिर, घने जंगल, और खलझूनी गांव की वादियां इस कठिनाई को भुला देती हैं। इसके बाद पहुंचते हैं अंतिम गांव झूनी, जहां एक और नन्दा देवी मंदिर स्थित है। यहीं पर रात्रि विश्राम कर अगली सुबह सरयू के वास्तविक उद्गम स्थल की ओर यात्रा होती है।

सरयू मात्र एक नदी नहीं,बल्कि भारतीय सनातन संस्कृति का स्तंभ है। इसका प्रवाह हिमालय से लेकर अयोध्या तक केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी है। यह नदी ऋषियों की तपस्या, राम की मर्यादा, वेदों का वाणी, और मानवता की शुद्धता का प्रतीक है। इसका उद्गम स्थल सरमूल और यात्रा पथ पौराणिक, पवित्र और प्रेरणादायक है।

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