उत्तराखंड की लोकसंस्कृति में गीत-संगीत का विशेष स्थान है। यहाँ के पर्वतीय अंचलों में गाए जाने वाले लोकगीत न केवल मनोरंजन का माध्यम हैं, बल्कि समाज की भावनाओं, परंपराओं और संस्कृति का भी सजीव चित्रण करते हैं। ऐसे ही लोकगीतों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय शैली है-न्यौली गीत। (Nyoli Song)
न्यौली गीत क्या है?
न्यौली (या न्योली) गीत उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र की एक प्रमुख लोकगायन शैली है। यह गीत आमतौर पर विरह (वियोग) और प्रेम की भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। जब पहाड़ों के युवक रोज़गार के लिए शहरों या दूरस्थ क्षेत्रों में पलायन करते हैं, तब पीछे छूट जाने वाली स्त्रियाँ (माएँ, पत्नियाँ, प्रेमिकाएँ) अपनी पीड़ा, प्रतीक्षा और भावनाओं को न्यौली गीतों के माध्यम से व्यक्त करती हैं। मूल रूप से न्यौली एक पंछी का नाम है, जिसके विरह गीत व गाथाएं पहाड़ों के घर गांवों में खूब व्याप्त हैं। कहते हैं कि यह पंछी अपने नर पक्षी की खोज में वनों में भटकती रहती है। इसीलिए महिलाओं की विरह गान की गायकी को ‘न्यौली‘ नाम दिया गया।
न्यौली की व्युत्पत्ति
‘‘न्यौली’’ की व्युत्पत्ति ‘‘नवल’’ या ‘‘नवेली’’ शब्द से मानी जा सकती है। अर्थात ‘‘न्यौली’’ का तात्पर्य हुआ- नवेली कामिनी को आलम्बन मानकर या सम्बोधित करके गाये जाने वाले प्रेमपरक गीत।
‘‘न्यौली’’ शब्द की अन्य व्युत्पत्तियाँ निम्न प्रकार की जा सकती हैंः-
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- न्यौली-नवेली- नव अवली। अर्थात ‘‘नये गीतों की अवली’’।
- न्यौली-नवेली (नवल)। अर्थात नये छंदों की आशुकविता, जो नितान्त मौलिक हो।
न्यौली-कोयल की एक पहाड़ी प्रजाति, जिसे कुमाऊँ में विरह का प्रतीक माना जाता है। प्रियतम के वियोग में गहरे घने वन में वह निरन्तर ‘‘झूरती’’ (रोती) रहती है। ऊपर वर्णित सभी अर्थों में ‘‘न्यौली’’ की व्युत्पत्ति पूर्णतः सार्थक और संगत है। अन्तिम व्याख्या लोकभावना और लोक परम्परा के अनुकूल है। (साभार)
संगीत और शैली
न्यौली गीतों की धुनें अत्यंत मधुर और करुंण होती हैं, जो श्रोता के हृदय को छू जाती हैं। यह गीत मुख्य रूप से एकाकी स्वर में गाए जाते हैं, और इनकी गायकी में गायक की भाव-भंगिमा और आवाज़ की कोमलता विशेष महत्त्व रखती है। वैसे तो ये न्यौली वन गीत है यानी एकांत वनों, धुर-डाँडों में गाये जाते हैं। यहाँ कंठ ही सब कुछ होता है अर्थात कोई वाद्य यंत्र का उपयोग नहीं होता है। लेकिन जब कोई गायक इस न्यौली को किसी स्टूडियो में रिकॉर्ड करवाता है तो वाद्य यंत्रों के रूप में बाँसुरी, हुड़का उपयोग में लाया जाता है।
कुछ न्यौली गीत इस प्रकार हैं –
Kumaoni Nyoli Song Lyrics
काटन्यां-काटन्यां पौली उन्छौ, चौमासी का वना।
बगन्यां पाणी थामी जान्छौ, ना थामीनों मना।
खल्दी है आरसि गाड़ि, औरे परकार की
हिटै देखूं सुवा जसि, बोलि सरकारे की।
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नानो हांगो दाड़िम को, ठुल हांगो दाख को
हिटनै बाटा बोली जांछि, बचन लाख को।
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ग्युं का खेत झन हिटिये, ग्युं बालि टुटलि
मुख मटकै झन देखिए, फिर माया फरकैलि
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लुआ को भदयालो ल्यायु, घुँघर्यालो डाड़ु
टकटक मुख देखछि, छाति जै के फाड़ु
विषय-वस्तु
न्यौली गीतों की विषयवस्तु व्यापक होते हुए भी मुख्य रूप से प्रेम, विरह, प्रकृति, सामाजिक परिस्थितियों और लोककथाओं पर केंद्रित होती है। इन गीतों में स्त्रियों की अंतर्व्यथा, पहाड़ की कठिनाइयाँ, पति की प्रतीक्षा, और जीवन की अनिश्चितताओं को बड़ी मार्मिकता से दर्शाया जाता है। कभी-कभी ये गीत संवादात्मक भी होते हैं, जिनमें प्रश्नोत्तर की शैली अपनाई जाती है।
सांस्कृतिक महत्त्व
न्यौली गीत उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं। ये न केवल वहां की बोली-वाणी को संरक्षित करते हैं, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी भावनाओं और परंपराओं को भी आगे बढ़ाते हैं। ये गीत लोक जीवन की संवेदनाओं को उकेरते हैं और लोगों को उनकी जड़ों से जोड़े रखते हैं।
निष्कर्ष
न्यौली गीत उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के अनमोल धरोहर हैं। आधुनिकता और पलायन के इस दौर में भले ही इनकी उपस्थिति सीमित हो रही हो, लेकिन यह उम्मीद की जाती है कि नए कलाकार और लोकसंस्थाएँ इस परंपरा को जीवित रखने का प्रयास करेंगी। न्यौली गीत न केवल लोकभावनाओं का आईना हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का गौरव भी हैं।