उत्तराखंड की लोक संस्कृति प्रकृति के साथ सामंजस्य, कृषि पर आधारित जीवनशैली और पारंपरिक रीति-रिवाजों से समृद्ध है। यहाँ के पर्व-त्योहार केवल धार्मिक आस्था तक ही सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक सहयोग, पारिवारिक रिश्तों और ऋतु चक्र को उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा का हिस्सा हैं। यहाँ एक ऐसा ही एक अनूठा पर्व मनाया जाता है- घी संक्रांति, जिसे कुमाऊं में घी त्यार या ओलगिया संक्रांति के नाम से जानते हैं, वहीं गढ़वाल अंचल में घिया संक्रांद के नाम से प्रसिद्ध है।
भाद्रपद माह की संक्रांति यानि इस माह की पहली तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व वर्षा ऋतु के मध्य में खेतों में लहराती फसलों में बालियाँ आने और पशुओं से प्राप्त घी-दूध की समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन सभी को अनिवार्य रूप से घी का सेवन करना, विशेष बेड़ू रोटियां और स्पेशल पिनालू के गाबे, दरवाजों पर अन्न बालियाँ लगाना, झोड़ा-चांचरी गायन और समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा उपहार भेंट करना, ये सब परंपराएं इस पर्व को विशेष बनाती हैं।
घी संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उत्तराखंडी लोक जीवन का एक उत्सव है, जो आत्मनिर्भरता, परिश्रम, प्रकृति प्रेम और सामाजिक एकता का सुंदर संदेश देता है। इस अवसर पर सभी को अपने आस-पड़ोस और मित्रों को घी संक्रांति के अवसर पर शुभकामनायें प्रेषित करते हैं। यहाँ हमारी टीम द्वारा आप सभी के लिए घी त्यार के शुभकामना और बधाई संदेश संकलित किये हैं, जिन्हें आप इस अवसर पर अपने सभी ईष्ट मित्रों को डिजिटल माध्यम से भेज सकते हैं –
Happy Ghee Sankranti Wishes, Quotes and Status
- घी संक्रांति (घी त्यार) की हार्दिक शुभकामनाएं!
प्रकृति की कृपा बनी रहे,
खेत-खलिहान लहलहाते रहें।
घी-दूध-दही की हो भरमार,
हर घर में सुख-शांति का हो संचार। - इस ओलगिया संक्रांति पर
परंपरा, सम्मान और समृद्धि के साथ
मनाएं यह लोक पर्व हर्षोल्लास से! - सूर्य देव का आशीर्वाद हो,
घर में दूध-घी की बहार हो,
तन-मन में उमंग का संचार हो, शुभ घी त्यार 2025
आपको और आपके परिवार को घृत संक्रांति की ढेरों शुभकामनाएं!
- “घी संक्रांति की हार्दिक बधाई! यह त्यौहार आपके जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली लाए।”
- “आपको और आपके परिवार को घी-त्यार की बहुत-बहुत शुभकामनाएं! भगवान सूर्य देव आप सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें।”
- “घी त्योहार के पावन अवसर पर, सभी को ढ़ेर सारी बधाई! यह त्योहार आपके जीवन में खुशियों का संचार करे।”
- “उत्तराखंड के लोकपर्व घी संक्रांति की शुभकामनाएं! प्रकृति और अन्न देवता का आशीर्वाद आप पर बना रहे।”
- “ओलगिया के शुभ अवसर पर, सभी को हार्दिक बधाई! यह त्यौहार आपके जीवन में मिठास और समृद्धि लाए।” Happy Ghee Sankranti 2025
पशुधन और घी की महत्ता
पहाड़ों में इस समय बरसात का मौसम होता है, जिस कारण घास की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में होने से पशुधन का पोषण अच्छा होता है जिससे दूध, दही, मक्खन और घी की अधिकता रहती है। कृषक और पशुपालक वर्ग इस समय संपन्न रहता है।
घी त्यार से सम्बंधित यह मान्यता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता, उसका अगला जन्म ‘गनेल’ (घोंघा) के रूप में होता है। यह केवल एक लोककथा नहीं, बल्कि घी के पौष्टिक गुणों और स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव को दर्शाने का प्रतीक है।
इस अवसर पर बच्चों के सिर पर घी मला जाता है, ताकि वे बलवान और बुद्धिमान बनें। यह परंपरा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली लोक मान्यताओं की झलक देती है।
विशेष पकवान: बेडू रोटी और गाबा
इस पर्व का पारंपरिक व्यंजन है ‘बेडू रोटी’, जिसमें भीगे हुए उरद की दाल की पिट्ठी भरकर रोटी बनाई जाती है और उसे घी में डुबोकर खाया जाता है। इसके साथ अरबी के बिना खिले पत्तों (गाबा) की सब्जी बनाई जाती है, जो इस त्योहार की पारंपरिक थाली का हिस्सा है।
उपहारों की परंपरा-ओलगिया
यह पर्व केवल कृषि और पशुपालन से ही नहीं जुड़ा, बल्कि सामाजिक आदान-प्रदान और परस्पर सम्मान का भी प्रतीक है। ऐतिहासिक रूप से, इस अवसर पर प्रजा अपने राजा को भेंट (ओल्गी) के रूप में खेतों की उपज, घी, फल और अन्य उत्पाद भेंट करती थी। साथ ही शिल्पी, दस्तकार, लोहार, बढ़ई और अन्य कारीगर भी अपने बनाए हुए उपकरण, बर्तन, वाद्य यंत्र आदि राजा को भेंट स्वरूप देते थे। इसके बदले राजा उन्हें इनाम और मान्यता देते थे।
यह परम्परा आज भी कहीं-कहीं मनाई जाती है। जिसमें अपने रिश्तेदारों को ओलग दिया जाता है। वहीं शिल्पकार बंधु भी अपनी अपनी कारीगरी को गांव के परिवारों को भेंट करते हैं और बदले में उसकी कीमत या अन्न दान दिया जाता है।
इस परंपरा ने समाज के हर वर्ग को इस पर्व से जोड़ दिया, चाहे वे सीधे खेती करते हों या उनके काम से खेती संभव होती हो। इस समावेशी स्वरूप के कारण ही इसे ‘ओलगिया संक्रांति’ कहा जाता है।
लोक परंपरा में एकता का पर्व
घी संक्रांति, एक ऐसा पर्व है जो किसान, पशुपालक, शिल्पकार, कारीगर, और सामान्य जन – सभी को एक सूत्र में पिरोता है। यह पर्व सिर्फ खानपान या रीति-रिवाजों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संवेदनाओं, परंपराओं और सामाजिक सहयोग की एक सजीव अभिव्यक्ति है।
घी संक्रांति या ओलगिया संक्रांति उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक पर्व है। यह पर्व हमें बोध कराता है कि प्रकृति, परिश्रम और पारस्परिक सहयोग से ही समाज समृद्ध होता है। इसमें लोकजीवन की सादगी, प्रकृति के प्रति श्रद्धा और सामूहिकता का गहरा संदेश छुपा है; जो आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।