उत्तराखंड की सुरम्य वादियों में बसा दयारा बुग्याल न सिर्फ अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके हरे-भरे ढलानदार घास के मैदानों के बीच मनाया जाने वाला अंढूड़ी उत्सव या Butter Festival भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है। यह पारंपरिक उत्सव हर वर्ष भाद्रपद महीने की संक्रांति के दिन मनाया जाता है और यह न केवल एक सांस्कृतिक पर्व है, बल्कि प्रकृति और मानव के बीच गहरे संबंध का प्रतीक भी है।
क्या है बटर फेस्टिवल?
उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में मनाया जाने वाला अंढूड़ी उत्सव (Butter Festival) एक अनोखा लोकउत्सव है, जिसमें पशुपालक और स्थानीय लोग एकत्रित होकर एक दूसरे के साथ मक्खन, दूध, घी और मट्ठा की होली खेलते हैं। हरे-भरे मखमली घास के मैदानों पर वे एक-दूसरे के माथे और गालों पर मक्खन लगाते हैं, जिससे पूरा वातावरण एक हर्षोल्लासपूर्ण उत्सव में बदल जाता है। यह दृश्य दर्शनीय होने के साथ-साथ हर किसी को आनंदित करने वाला होता है। यही उत्सव स्थानीय भाषा में अंढूड़ी है और अब मक्खन की होली यानि बटर फेस्टिवल के नाम से देश-विदेशों में पहचाना जाने लगा है।
इस अनूठे उत्सव में भाग लेने के लिए उत्तरकाशी, रैथल, नटीण, भटवाड़ी, क्यार्क और बंद्राणी के ग्रामीण बड़ी श्रद्धा और उत्साह से सोमेश्वर देवता की डोली के साथ दयारा बुग्याल पहुंचते हैं और डोली की पूजा अर्चना कर अपने पशुओं और क्षेत्र की सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं। यह धार्मिक यात्रा अपने आप में एक सांस्कृतिक यात्रा बन जाती है।
दयारा बुग्याल: प्रकृति का उपहार
समुद्रतल से करीब 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित, लगभग 28 वर्ग किलोमीटर में फैला दयारा बुग्याल भारत के सबसे सुंदर और विशालतम बुग्यालों (अल्पाइन घासभूमि) में से एक है। यह स्थल उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी और रैथल गांव से 10 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद पहुंचा जा सकता है। सर्दियों में यह स्थल पूरा हिमाच्छादित रहता है। ग्रीष्म ऋतु आते ही यहाँ की बर्फ पिघलने लगती है और धीरे-धीरे पूरे मैदान मखमली घास से भरने लगती है। जिसमें विभिन्न प्रकार के पुष्प और औषधीय वनस्पतियां उग आती हैं। हर वर्ष विभिन्न गांवों से पशुपालक अपने मवेशियों को लेकर यहाँ पहुँचते हैं। वहीं ट्रैकिंग और प्रकृति के शौक़ीन लोग भी बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं।
क्यों मनाया जाता है बटर फेस्टिवल
Butter Festival के नाम से प्रसिद्ध अंढूड़ी उत्सव पशुपालकों का यहाँ के देवताओं, प्रकृति और अपने पशुधन के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है। यहाँ के स्थानीय लोग अपने मवेशियों के लिए अच्छे और पौष्टिक चारे की उपलब्धता के लिए गर्मियों के मौसम में ऊँचे बुग्यालों की ओर चले आते हैं। जहाँ पशुओं को पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक और जड़ी-बूटी युक्त चारा प्राप्त होता है, और पशुपालकों को अधिक मात्रा में दूध, दही, मक्खन और घी प्राप्त होता है। धीरे-धीरे बरसात का मौसम समाप्त होने और ठंडक बढ़ने के साथ ही जब वे अपने गांवों की ओर लौटने लगते हैं, तब वे प्रकृति को धन्यवाद देने के लिए अंढूड़ी उत्सव आयोजित करते हैं।
यह पर्व प्रकृति पूजा का एक उदाहरण है जिसमें पशुपालक, अपने ईष्ट देवता और प्रकृति का आभार प्रकट कर ख़ुशी से झूमते हैं। केवल हर्ष और उल्लास का अवसर नहीं है, बल्कि यह उस गहरे संबंध को दर्शाता है जो स्थानीय लोगों का प्रकृति से जुड़ा है। वे इस उत्सव को मनाकर अपने पुष्ट मवेशियों के साथ धीरे – धीरे अपने घरों को लौटने लगते हैं।
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पर्यटन की दृष्टि से भी खास
साल दर साल पशुपालकों का यह उत्सव बटर फेस्टिवल के रूप में लोकप्रिय होते जा रहा है। हर साल सैकड़ों पर्यटक इस उत्सव को देखने के लिए दयारा बुग्याल पहुँचने लगे हैं। उत्तराखंड पर्यटन विभाग द्वारा भी इस उत्सव आयोजित किया जाता है। यहाँ पहुँचने वाले पर्यटकों को केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक संवेदनशील सांस्कृतिक यात्रा जैसा महसूस होता है। मक्खन की होली, स्थानीय रासो-तांदी जैसे लोक नृत्य गीत, देव डोली की शोभा यात्रा, और पहाड़ी व्यंजन, ये सब मिलकर इस उत्सव को एक अविस्मरणीय अनुभव बना देते हैं।
बुग्यालों का संरक्षण जरुरी
बुग्यालों की जैव विविधता बहुत विशिष्ट है। इसमें थोड़ा सा भी बदलाव होता है तो यहाँ के वनस्पतियों और जीवों पर प्रभाव पड़ता है। उन पर हमेशा के लिए विलुप्त होने का भी खतरा रहता है। कुछ वर्षों से जिस प्रकार दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल समेत विभिन्न ट्रैकिंग के लिए सैकड़ों पर्यटक पहुँच रहे हैं, यह इस बुग्याल क्षेत्र के भविष्य के बिलकुल भी ठीक नहीं है। हमें चाहिए कि सीमित लोगों के बीच सीमित संसाधनों के साथ यहाँ पर्यटक आएं और बिना कोई नुकसान पहुंचाए इन बुग्यालों का आनंद लें।
समापन विचार
दयारा बुग्याल का अंढूड़ी उत्सव (मक्खन की होली ) केवल एक पारंपरिक उत्सव का आयोजन नहीं है, यह संवेदनशील जीवन शैली, प्रकृति प्रेम और आस्था का सम्मिलन है। इस उत्सव में भाग लेकर हर कोई जीवन के उस स्वरूप से जुड़ता है जहाँ प्रकृति और संस्कृति एक-दूसरे की पूरक होती हैं।
यदि आप उत्तराखंड की संस्कृति, पर्वों और प्राकृतिक सुंदरता को करीब से महसूस करना चाहते हैं, तो अगली बार बटर फेस्टिवल के अवसर पर दयारा बुग्याल अवश्य जाएं। यह यात्रा आपको न केवल यहाँ की नैसर्गिक सौंदर्य को दिखाएगी, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से आपको देवभूमि उत्तराखंड से जोड़ेगी, मगर ध्यान रखें आध्यात्मिक रूप में ही यहाँ पहुंचें।
Butter Festival 2025 : दयारा बुग्याल में इस वर्ष बटर फेस्टिवल (अंढूड़ी उत्सव) मनाने की तिथि रविवार, दिनांक 17 अगस्त 2025 को है। लेकिन उत्तरकाशी के धराली में आई विनाशकारी आपदा को देखते हुए इस उत्सव को मनाने, न मनाने या सूक्ष्म रूप में मनाने का निर्णय सम्बंधित गांवों के लोग और पशुपालक लेंगे।