पहाड़ों की ऊंचाइयों से अगर कोई मिसाल मिलती है तो वह है आत्मविश्वास और मेहनत की। बागेश्वर जिले के कपकोट तहसील के शामा गांव के एक सेवानिवृत्त शिक्षक भवान सिंह कोरंगा ने साबित कर दिया कि उम्र महज़ एक संख्या है और नया जीवन अध्याय कभी भी शुरू किया जा सकता है। शिक्षक जीवन से निवृत्त होने के बाद भवान सिंह ने कृषि-बागवानी को अपनाया और कीवी उत्पादन में ऐसा मुकाम हासिल किया कि आज उन्हें “कीवी मैन” के नाम से जाना जाता है।
शिक्षक से कृषक तक का सफर
भवान सिंह कोरंगा पहले इंटर कॉलेज शामा में प्रधानाचार्य थे। साल 2009 में रिटायर हुए लेकिन उन्होंने इससे पहले ही खेती-बागवानी की दिशा में कदम बढ़ा दिए थे। साल 2008 में कीवी की खेती से शुरुआत की और शुरुआत में ही उन्हें उम्मीद से बेहतर परिणाम मिले। उन्हें बचपन से ही कृषि और बागवानी में रुचि थी, लेकिन कई अन्य फसलों में असफलता ने उन्हें सीखने का अनुभव दिया।
शुरुआत, संघर्ष और सफलता की कहानी
कीवी की खेती का विचार उन्हें तब आया जब 2004 में उनके चचेरे भाई हिमाचल प्रदेश से कीवी के कुछ पौधे लाए। कुछ सालों में जब उन पौधों ने फल देना शुरू किया, तो उन्होंने खुद इसे आज़माने की ठानी। रिसर्च और वैज्ञानिकों से मार्गदर्शन लेकर उन्होंने शामा में कीवी का पहला बगीचा लगाया।
आज उनके पास ब्रूनो, हैवार्ड, मौंटी प्रजाति के करीब 300 बेल हैं, जिनसे वे हर साल कई क्विंटल कीवी का उत्पादन करते हैं। यह फल वह सीधे बाजार में बेचते हैं और साथ ही फूड प्रोसेसिंग यूनिट के माध्यम से जूस, कैंडी जैसे उत्पाद भी तैयार करते हैं, जिससे उन्हें हर महीने लाखों रुपये की आय हो रही है। उनके कीवी की गुणवत्ता को देखते हुए वर्तमान में
शामा: अब राज्य का प्रमुख कीवी उत्पादक गांव
उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी संस्थान हल्द्वानी और पंतनगर के विज्ञानियों द्वारा नैनीताल और उत्तरकाशी के साथ शामा गांव को टिश्यू तकनीक पर आधारित कीवी उत्पादन के लिए शोध क्षेत्र के रूप में चुना गया। भवान सिंह कोरंगा इस क्षेत्र में सबसे पहले कदम रखने वाले किसान थे। उन्होंने जब पहली बार कीवी की फसल ली, तो पैदावार ने उनकी उम्मीदों को पार कर दिया। यह सफलता ही आगे की प्रेरणा बनी।
एक गांव से शुरू होकर बनी कीवी बेल्ट
शुरुआत में सिर्फ भवान सिंह ने कीवी उगाई, लेकिन उनकी सफलता ने पूरे शामा गांव और आसपास के क्षेत्रों को प्रेरित किया। आज 200 परिवारों वाले गांव में 81 परिवार कीवी की खेती कर रहे हैं। साथ ही, लीती जैसे पास के गांवों में भी बड़े-बड़े बागान उगाए जा रहे हैं। पूरे क्षेत्र ने मिलकर शामा-लीती को कीवी हब बना दिया है।
सम्मान
भवान सिंह को उनकी कीवी खेती में उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली द्वारा “डिस्ट्रिक्ट मिलियनेयर फार्मर अवार्ड 2023” से नवाजा गया। यह सम्मान पाने वाले जिले के पहले किसान हैं। यह सम्मान केवल उनकी मेहनत का प्रतिफल नहीं, बल्कि पूरे शामा गांव के लिए प्रेरणा बन गया है। उनके इस सम्मान से क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों में उत्साह और आत्मविश्वास की लहर दौड़ गई है। देहरादून राजभवन में वसंतोत्सव के अवसर पर उनके द्वारा किये गए उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें उत्तराखंड के राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया है।
पलायन कर रहे युवाओं के लिए एक सन्देश
भवान सिंह कोरंगा का कहना है कि जो युवा रोज़गार के लिए शहरों में संघर्ष कर रहे हैं, वे चाहें तो गांव में ही कीवी की खेती से आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उनके अनुसार:
“एक नाली ज़मीन में अगर आठ पौधे लगें और हर पौधा साल में 50 किलो भी फल दे, तो लाख रुपये तक की आमदनी संभव है। अगर ज़मीन अच्छी हो, तो यह और भी बढ़ सकता है।”
उन्होंने यह भी बताया कि यदि गांव की खाली पड़ी ज़मीन को लीज़ पर लेकर खेती की जाए तो यह स्थायी रोजगार का माध्यम बन सकती है।
अनुभव और नवाचार का संगम
शिक्षक के रूप में वर्षों की सेवा देने के बाद भवान सिंह कोरंगा ने कृषि क्षेत्र में जिस लगन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से काम किया, वह सराहनीय है। उन्होंने यह दिखाया कि पारंपरिक खेती को आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़ा जाए तो पहाड़ की धरती भी सोना उगल सकती है।
भवान सिंह कोरंगा की कहानी केवल एक सफल किसान की नहीं, बल्कि एक ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व की है जिसने रिटायरमेंट के बाद जीवन में नया उत्साह, नया सपना और नया रास्ता चुना। उनकी यह उपलब्धि उत्तराखंड के युवाओं और किसानों को यह संदेश देती है कि नवाचार, परिश्रम और सकारात्मक सोच से किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जा सकती है।