उत्तराखंड की सुरम्य वादियों में स्थित कैंची धाम आज केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुका है। बाबा नीम करौली महाराज की तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध इस स्थल में हर वर्ष 15 जून को हजारों भक्त पहुँचते हैं, जब यहाँ स्थापना दिवस (प्रतिष्ठा महोत्सव) बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन एक विशेष बात और देखने को मिलती है वह है इन सभी भक्तों को मिलने वाला मालपुए का प्रसाद।
पर मन में यह प्रश्न जरूर आता है कि आख़िर क्यों हर साल स्थापना दिवस पर केवल मालपुए का ही प्रसाद बांटा जाता है?
इस प्रश्न के उत्तर में इतिहास, आस्था और संत परंपरा का अनूठा मिश्रण छिपा है।
मालपुआ और बाबा नीम करौली महाराज : श्रद्धा से जुड़ी कहानी
बाबा नीम करौली महाराज अपने भक्तों को प्रेम, सेवा और साधना का मार्ग दिखाने वाले एक सिद्ध संत थे। उनके जीवन में कई चमत्कार और अलौकिक घटनाएं जुड़ी हैं। कहा जाता है कि मालपुआ बाबा का प्रिय भोग था। वे स्वयं सादा जीवन जीने वाले संत थे लेकिन जब बात प्रसाद की आती, तो वे अक्सर कहते-
“भक्तों को वह दो जो आत्मा को मिठास दे, और ह्रदय को संतोष।”
मालपुआ-घी, दूध, आटा अथवा मैदा, सूजी और गुड़/चीनी के घोल से बना एक पारंपरिक मीठा पकवान होता है, जिसे तेल या देशी घी में तलकर पकाया जाता है। उत्तर भारत यह बहुत ही लोकप्रिय है। यहाँ विभिन्न लोक पर्वों पर भगवान् को इसका भोग लगाते हैं। यह न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि इसे संपन्नता और शुभता का प्रतीक भी माना जाता है।
कैंची धाम ट्रस्ट से जुड़े लोगों के अनुसार मालपुआ को नीम करौली बाबा ने ही प्रसाद के रूप में निर्धारित किया था। इसीलिये हर वर्ष स्थापना दिवस के अवसर पर मालपुवे का भोग भक्तों में प्रसाद स्वरुप बाँटने की परंपरा चली आई है। इसी के साथ अब आलू की सब्जी भी भक्तों में बांटी जाती है।
स्थापना दिवस पर मालपुए का महत्व
15 जून, 1964 को बाबा नीम करौली महाराज ने नैनीताल जिले के कैंची गांव में इस आश्रम की स्थापना की थी। इस पावन अवसर हनुमान जी को बाबा ने मालपुआ का भोग लगाया था और प्रसाद स्वरुप भक्तों में इसे वितरित किया था। तब से हर वर्ष कैंची धाम स्थापना दिवस के अवसर पर एक भव्य भंडारे और प्रसाद वितरण के माध्यम से मालपुए का प्रसाद भक्तों में बांटने की परम्परा चली आ रही है। इस महाप्रसाद को ग्रहण करने के लिए देश-विदेशों से श्रद्धालु कैंची धाम उत्तराखंड पहुँचते हैं।
श्रद्धा, सेवा और प्रसाद
हर वर्ष स्थापना दिवस के अवसर पर हजारों की संख्या में भक्त कैंची धाम पहुंचते हैं। इस दिन बिना कोई भेदभाव के सभी को मालपुवे का प्रसाद दिया जाता है। लाखों की संख्या में मालपुए बनते हैं और भक्त इन्हें श्रद्धा के साथ बाबा का आशीर्वाद मानते हुए ग्रहण करते हैं और अपने साथ ले जाते हैं। “यह प्रसाद नहीं, बाबा का आशीर्वाद है।” वे इसे शक्ति और संतुलन का प्रतीक मानते हैं। भक्तों में विश्वास है कि इस प्रसाद को प्राप्त करने। ग्रहण करने के इच्छाएं पूर्ण होती है और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
जहां प्रसाद बनाने के लिए भी कठिन ‘तप’
प्रतिष्ठा दिवस के लिए मालपुए बनाने का काम 12 जून से ही शुरू हो जाता है। शुद्ध देशी घी से बने मालपुए बनाने के यहां अलग नियम हैं। और यह नियम किसी तप से कम नहीं है। प्रसाद बनाने में वही श्रद्धालु भाग ले सकता है जो व्रत लेकर आए और धोती, कुर्ता धारण कर उस अवधि में लगातार हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा हो।
15 जून से तीन दिन पहले से लगातार प्रसाद बनाने का काम चालू रहता है। प्रसाद के रूप में मालपुए बांटने की इच्छा बाबा नीम करौली महाराज की ही थी। प्रसाद की शुद्धता को देखते हुए वही श्रद्धालु प्रसाद बनाने में भागीदारी करते हैं जो कि इस दौरान उपवास पर रहते हैं।
बारी-बारी से श्रद्धालु प्रसाद बनाने में अपनी भागीदारी करते हैं। मालपुए बनाने के बाद उन्हें पेटियों और डालियों में रख दिया जाता है। 15 जून को बाबा को भोग लगाने के बाद ही इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। कैंची मंदिर के प्रसाद की महत्ता इतनी है कि इसे पाने के लिए लोग दूर-दूर से यहां मंदिर में पहुंचते हैं।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश
मालपुए का यह प्रसाद हमें कई बातें सिखाता है कि –
- सस्ती और सरल चीज़ों में भी गहराई होती है– बाबा ने कभी महंगे भोग की अपेक्षा नहीं की।
- सेवा ही सबसे बड़ा साधन है– सैकड़ों स्वयंसेवक इस दिन प्रसाद बनाने और बांटने में जुटते हैं।
- भक्त और भगवान के बीच का सेतु है प्रसाद -यही कारण है कि आज भी कैंची धाम का मालपुआ भक्तों की आत्मा तक मिठास भर देता है।
निष्कर्ष
कैंची धाम में मालपुए का प्रसाद केवल एक पकवान नहीं, बल्कि भक्तों की बाबा नीम करौली के प्रति आस्था, विश्वास और उनका आशीर्वाद है। धाम में मालपुवे बाँटने यह परंपरा हर वर्ष श्रद्धालुओं को बाबा से जोड़ती है, उन्हें सेवा और प्रेम का संदेश देती है, और बताती है कि सच्ची भक्ति सरलता में बसती है।
अगर आप भी 15 जून को कैंची धाम जा रहे हैं, तो मालपुए का प्रसाद अवश्य ग्रहण करें। यह बाबा के हाथों से मिले उस आशीर्वाद की तरह है जो जीवन भर आत्मा को शांति और विश्वास से भर देता है।
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