देवभूमि उत्तराखंड, न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी लोकसंस्कृति, परंपराएं और गीत-संगीत भी इसे एक अनोखी पहचान देते हैं। यहां पर्वतीय अंचलों में जीवन के हर महत्वपूर्ण संस्कारों में गीतों की एक विशेष भूमिका होती है। इन्हें शकुन आंखर, मांगल गीत, फाग या संस्कार गीत कहा जाता है।
उत्तराखंड और हिमालयी अंचल की लोक-संस्कृति में ऐसे अनेक गीत हैं, जो केवल शब्दों का मेल नहीं, बल्कि लोकमानस की गहराई और श्रद्धा का प्रतिबिंब होते हैं। विवाह जैसे शुभ अवसर पर गाए जाने वाले “निमंत्रण गीत” इन्हीं गीतों का महत्वपूर्ण भाग हैं। ऐसा ही एक मंगल गीत है-
===== निमंत्रण गीत =====
सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।हरियाँ तेरो गात, पिंगल तेरो ठून,रत्नन्यारी तेरी आँखी, नजर तेरी बांकी,जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ। गौं-गौं न्यूत दी आ।नौं न पछ्याणन्यू, मौ नि पछ्याणन्य़ूं, कै घर कै नारि दियोल?राम चंद्र नौं छु, अवध पुर गौ छु, वी घर की नारी कैं न्यूत दी आ।सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।गोकुल गौं छू, कृष्ण चंद्र नौं छु, वी घर की नारी कैं न्यूत दी आ।सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा, जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।कैलाश गौ छू, शंकर उनर नु छू, वी घवी नारी न्यूत दी आ।सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा, जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।अघिल आधिबाड़ी, पछिल फुलवाड़ी, वी घर की नारी कैं न्यूत दी आ।हस्तिनापुर गौं छ, सुभद्रा देवी नौं छ, वी का पुरुष को अरजुन नौं छ,वी घर, वी नारि न्यूंत दी आ।जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।
सांस्कृतिक संदर्भ:
यह गीत मंगलाचार का वह भाग है, जिसमें घर की महिलाएँ तोते (सुवा) के माध्यम से देवी-देवताओं को अपने घर आमंत्रित करती हैं। तोता यहाँ केवल एक पक्षी नहीं, बल्कि एक दिव्य संदेशवाहक बन जाता है जो लोकधारणा में शुभता का प्रतीक है।
गीत का प्रसंग और भावार्थ:
गीत की पंक्तियाँ एक संवाद शैली में हैं – जहाँ घर की वरिष्ठ महिला एक बनखंडी (वन में रहने वाले) तोते से आग्रह करती है कि वह नगर में जाकर देवताओं को न्यौता दे आए। इस अनुरोध में अपार श्रद्धा, विश्वास और भोली सी लोकभावना झलकती है। तोते की सुंदरता – हरा शरीर, पीली चोंच, लाल मुख और रतनारी आंखें – उसकी दिव्यता को दर्शाती हैं।
तोता प्रश्न करता है –
“मैं किसको न्योता दूं? न तो मैं किसी का नाम जानता हूं, न गांव।”
तब घर की महिला बताती है —
“उनका नाम रामचंद्र है, गांव अवध पुर है।
तुम जाकर उस घर की नारी को निमंत्रण देखकर आओ। “”
इसी प्रकार महिला और तोते के बीच संवाद चलते रहता है। यह संवाद केवल कथा नहीं, बल्कि श्रद्धा से जुड़ी प्रार्थना है -जहां लोकगीत देवताओं को आमंत्रण देने का माध्यम बन जाते हैं।
तोते को निमंत्रण के लिए उपयुक्त मानने के कारण:
- शुभता का प्रतीक
- लोकविश्वास के अनुसार तोता शुभ और मंगल कार्यों में प्रयोग किया जाता है।
- वर की चौकी पर भी तोते की आकृति अंकित की जाती है।
- गति और पहुंच की शक्ति
- तोता उड़ने वाला प्राणी है, जो वन और नगर दोनों स्थानों से भलीभांति परिचित होता है।
- इसलिए वह शीघ्र और सटीक रूप से संदेश पहुंचा सकता है।
- वाणी की नकल करने की क्षमता
- तोता मनुष्य की भाषा की नकल कर सकता है, जिससे संदेश सजीव और प्रभावशाली बनता है।
लोकसंस्कृति में निमंत्रण गीतों का महत्व:
न्यौता देना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि देवताओं को साक्षात् आमंत्रण देने की श्रद्धा का प्रतीक है। हमारे पूर्वजों ने अपने दैनिक जीवन, त्योहारों और धार्मिक आयोजनों को इन गीतों से सुसज्जित कर एक सांस्कृतिक विरासत खड़ी की है। इस गीत के माध्यम से हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि कैसे एक तोते के माध्यम से भक्ति, सौंदर्य, परंपरा और भावना का अद्भुत संगम रचा गया।
समापन:
इस निमंत्रण गीत में जो सौंदर्य है, वह केवल शब्दों में नहीं, बल्कि उस लोकभाषा, लोकमान्यता और लोकश्रद्धा में है जिसने तोते जैसे पक्षी को भी देवता से संवाद करने का माध्यम बना दिया। यही है भारतीय लोकसंस्कृति की विशेषता – जहाँ प्रकृति, संस्कृति और श्रद्धा एकसाथ गूंजते हैं।
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